बालक के नैतिक विकास में मातृभाषा का क्या महत्व है
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मनुष्य जब जन्म लेता है। तब वह सबसे पहले उसकी मातृभाषा से परिचित होता है । हमारे जीवन मे जब हम सबसे पहले वार्तालाप करते है तो वह हमारी मातृभाषा मे होता है , उसके बाद हमे बाकी भाषाए ज्ञात होती है । हमारा विकास भी हमारी मातृभाषा पर निर्भर है। भलेही लोग दुसरी भाषाओ को श्रेष्ठ समझते हो परंतु सत्य तो यह है की हमारे नैतिक विकास के पिछे हमारी मातृभाषा का हाथ है, जो हमे बोलना और समझना सिखाती है।
एक बालक विनैतिक होता है अर्थात वो न ही तो नैतिक माना जाता है ओर ना ही अनैतिक। उसकी नैतिक बनने की शुरुआत होती है उसके पारिवारिक माहौल से, जैसा उस बालक के घर परिवार का माहौल होगा वैसा ही वह बालक होगा।
घर परिवार में भी नैतिकता का सबसे पहला चरन है मातृभाषा। बच्चा जब से गर्भ में होता है तब से ही वह सब सुन व समझ सकने की क्षमता रखता है। उसकी मातृभाषा के द्वारा ही वह शुरु से वार्तालाप करता है। वह जो भी बोलना सीखता है केवल अपनी मातृभाषा में ही।
मातृभाषा हर बालक के लिए शुरुआती चरन है उसके विकास में चाहे वो सामाजिक विकास हो या फिर नैतिक विकास।