बालक की सूझ बूझ
Kahani in Hindi.
बालक की सूझ बूझ in hindi.
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बालक की सूझ बूझ
सम्राट अकबर के समय की बात है। महेशदास नामक एक पंद्रह वर्ष का अनाथ बालक आगरे के किले के पास पान की एक छोटी-सी दुकान करता था और राह चलने वालों को सस्ते दाम में पान खिलाकर किसी तरह अपनी जीविका चलाता था। एक दिन दोपहर में उसकी दुकान पर एक शाही नौकर आया। उसने बादशाह के लिए तुरंत एक पाव चूना मांगा। महेशदास को इस पर कुछ कौतूहल हुआ। उसने हंडिये में से चूना निकालकर नौकर के हाथ में रख दिया और पूछा, 'भाई साहब! बादशाह सलामत इतना चूना क्या करेंगे।' नौकर ने कहा, 'कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करेंगे! अभी वे जैसे ही खाना खाकर उठे, मैंने उन्हें दो पान दिये। पान को मुंह में रखते ही उन्होंने मुझे हुक्म दिया कि फौरन दौड़कर एक पाव चूना ले आओ। जहां तक मैं समझता हूं, पान में चूना कम रहा होगा, इसीलिए...।' महेशदास बीच ही में बोल उठा, 'भाईजान! यदि पान में चूना कम होता तो, जहांपनाह थोड़ा-सा चूना मंगाते। पावभर चूना वे क्या करेंगे?' नौकर ने लापरवाही से उत्तर दिया, 'इससे मुझसे क्या मतलब। चाहे खाएं या बहा दें।' महेशदास ने कहा, 'इसके बहुत मतलब हंै, आप समझ नहीं रहे हैं। यह चूना बादशाह ने अपने लिए नहीं, आपके लिए मंगाया होगा।' नौकर बोला, 'ठीक है, मुझे देंगे तो रख लूंगा; आगे काम देगा।' महेशदास ने कहा, 'काम क्या देगा, इसी से आपका काम तमाम हो जायेगा। इसलिए जरा सम्हलकर बादशाह के सामने जाइयेगा।' शाही नौकर को इस चेतावनी पर कुछ आश्चर्य हुआ। उसने लड़के से इसका कारण पूछा। महेशदास बोला, 'मैं समझता हूं आपने बादशाह सलामत के पान में कुछ अधिक चूना लगा दिया होगा, उससे उनकी जीभ कट गई होगी। अब वे इस गलती की सजा देने के लिए आपको अपने सामने पावभर चूना खिलाना चाहते होंगे। उनकी तो केवल जीभ ही कटी, आपका इतने चूने से कलेजा भी कट जायेगा।' यह सुनते ही बेचारे नौकर के पैर के नीचे की धरती खिसकने लगी। उसने घबराकर पूछा, 'भाई, कहीं ऐसा ही न हो! अब बताओ क्या करूं?' महेशदास ने कहा, 'इस संकट से बचने का एक ही उपाय है। वहां जाने से पहले एक सेर घी पी लीजिये। इससे आप पर चूने का असर नहीं होगा। आप साफ बच जायेंगे।' शाही नौकर ने तुरंत एक सेर घी लेकर पी लिया। इसके बाद वह पावभर चूना लेकर किले में गया। वहां सचमुच वही हुआ जो महेशदास ने कहा था। बादशाह ने उसे सामने बैठाकर पावभर चूना खिलाया और तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया। नौकर पर उसका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। शाम को बादशाह ने देखा तो वह बिलकुल भला-चंगा था। उसकी जीभ पर कहीं एक छाला भी नहीं पड़ा था। बादशाह ने चकित होकर उससे इसका रहस्य पूछा। नौकर ने डरते-डरते सेरभर घी पीने की बात बता दी। बादशाह ने फिर पूछा, 'तुम्हें यह कैसे पता चला कि मैंने पावभर चूना तुम्हें खिलाने के लिये ही मंगवाया था?' नौकर ने उत्तर दिया, 'जहांपनाह! यह बात मुझे नहीं, बल्कि उस पानवाले की है, जिसके यहां से मैं चूना लेने गया था।' बादशाह ने पुन: प्रश्न किया, 'और पहले से ही घी पीने की तरकीब किसने बताई?' नौकर बोला, 'हुजूर! उसी ने।' अकबर कुछ क्षणों के लिए मौन हो गया। नौकर ने समझा कि बादशाह उसे दुबारा कड़ी सजा देने की सोच रहा है। लेकिन वह वास्तव में मन ही मन पानवाले की अनोखी सूझ-बूझ की सराहना कर रहा था। अकबर स्वयं बड़ा चतुर, पारखी और गुण-ग्राहक था। उसने महेशदास को तुरंत अपने पास बुलवाया। गरीब लड़का फटे-पुराने कपड़े पहने हुए शाही महल में गया। बादशाह ने उसे देखते ही समझ लिया कि वह दीन-हीन बालक होकर भी विलक्षण प्रतिभाशाली है। उसने उसी दिन से महेशदास को अपने साथ रख लिया। धीरे-धीरे वह अपनी योग्यता के बल पर बादशाह का परम कृपा-पात्र बन गया। वही बालक आगे चलकर राजा बीरबल के नाम से विख्यात हुआ।
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बालक की सूझ बूझ
सम्राट अकबर के समय की बात है। महेशदास नामक एक पंद्रह वर्ष का अनाथ बालक आगरे के किले के पास पान की एक छोटी-सी दुकान करता था और राह चलने वालों को सस्ते दाम में पान खिलाकर किसी तरह अपनी जीविका चलाता था। एक दिन दोपहर में उसकी दुकान पर एक शाही नौकर आया। उसने बादशाह के लिए तुरंत एक पाव चूना मांगा। महेशदास को इस पर कुछ कौतूहल हुआ। उसने हंडिये में से चूना निकालकर नौकर के हाथ में रख दिया और पूछा, 'भाई साहब! बादशाह सलामत इतना चूना क्या करेंगे।' नौकर ने कहा, 'कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करेंगे! अभी वे जैसे ही खाना खाकर उठे, मैंने उन्हें दो पान दिये। पान को मुंह में रखते ही उन्होंने मुझे हुक्म दिया कि फौरन दौड़कर एक पाव चूना ले आओ। जहां तक मैं समझता हूं, पान में चूना कम रहा होगा, इसीलिए...।' महेशदास बीच ही में बोल उठा, 'भाईजान! यदि पान में चूना कम होता तो, जहांपनाह थोड़ा-सा चूना मंगाते। पावभर चूना वे क्या करेंगे?' नौकर ने लापरवाही से उत्तर दिया, 'इससे मुझसे क्या मतलब। चाहे खाएं या बहा दें।' महेशदास ने कहा, 'इसके बहुत मतलब हंै, आप समझ नहीं रहे हैं। यह चूना बादशाह ने अपने लिए नहीं, आपके लिए मंगाया होगा।' नौकर बोला, 'ठीक है, मुझे देंगे तो रख लूंगा; आगे काम देगा।' महेशदास ने कहा, 'काम क्या देगा, इसी से आपका काम तमाम हो जायेगा। इसलिए जरा सम्हलकर बादशाह के सामने जाइयेगा।' शाही नौकर को इस चेतावनी पर कुछ आश्चर्य हुआ। उसने लड़के से इसका कारण पूछा। महेशदास बोला, 'मैं समझता हूं आपने बादशाह सलामत के पान में कुछ अधिक चूना लगा दिया होगा, उससे उनकी जीभ कट गई होगी। अब वे इस गलती की सजा देने के लिए आपको अपने सामने पावभर चूना खिलाना चाहते होंगे। उनकी तो केवल जीभ ही कटी, आपका इतने चूने से कलेजा भी कट जायेगा।' यह सुनते ही बेचारे नौकर के पैर के नीचे की धरती खिसकने लगी। उसने घबराकर पूछा, 'भाई, कहीं ऐसा ही न हो! अब बताओ क्या करूं?' महेशदास ने कहा, 'इस संकट से बचने का एक ही उपाय है। वहां जाने से पहले एक सेर घी पी लीजिये। इससे आप पर चूने का असर नहीं होगा। आप साफ बच जायेंगे।' शाही नौकर ने तुरंत एक सेर घी लेकर पी लिया। इसके बाद वह पावभर चूना लेकर किले में गया। वहां सचमुच वही हुआ जो महेशदास ने कहा था। बादशाह ने उसे सामने बैठाकर पावभर चूना खिलाया और तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया। नौकर पर उसका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। शाम को बादशाह ने देखा तो वह बिलकुल भला-चंगा था। उसकी जीभ पर कहीं एक छाला भी नहीं पड़ा था। बादशाह ने चकित होकर उससे इसका रहस्य पूछा। नौकर ने डरते-डरते सेरभर घी पीने की बात बता दी। बादशाह ने फिर पूछा, 'तुम्हें यह कैसे पता चला कि मैंने पावभर चूना तुम्हें खिलाने के लिये ही मंगवाया था?' नौकर ने उत्तर दिया, 'जहांपनाह! यह बात मुझे नहीं, बल्कि उस पानवाले की है, जिसके यहां से मैं चूना लेने गया था।' बादशाह ने पुन: प्रश्न किया, 'और पहले से ही घी पीने की तरकीब किसने बताई?' नौकर बोला, 'हुजूर! उसी ने।' अकबर कुछ क्षणों के लिए मौन हो गया। नौकर ने समझा कि बादशाह उसे दुबारा कड़ी सजा देने की सोच रहा है। लेकिन वह वास्तव में मन ही मन पानवाले की अनोखी सूझ-बूझ की सराहना कर रहा था। अकबर स्वयं बड़ा चतुर, पारखी और गुण-ग्राहक था। उसने महेशदास को तुरंत अपने पास बुलवाया। गरीब लड़का फटे-पुराने कपड़े पहने हुए शाही महल में गया। बादशाह ने उसे देखते ही समझ लिया कि वह दीन-हीन बालक होकर भी विलक्षण प्रतिभाशाली है। उसने उसी दिन से महेशदास को अपने साथ रख लिया। धीरे-धीरे वह अपनी योग्यता के बल पर बादशाह का परम कृपा-पात्र बन गया। वही बालक आगे चलकर राजा बीरबल के नाम से विख्यात हुआ।
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