बालक श्रीकृष्ण के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
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HOMEPAGEGODKRISHNA
KRISHNA
Krishna Baal Roop varnan by Surdas
Krishna Baal Roop varnan by Surdas
Krishna Baal Roop varnan by Surdas
कृष्ण बाल रूप वर्णन सूरदास द्वारा
Barno Baal besh Murari
बरनौं बाल-बेष मुरारि ।
थकित जित-तित अमर-मुनि-गन, नंद-लाल निहारी ।
केस सिर बिन बपन के चहुँ दिसा छिटके झारि ।
सीस पर धरि जटा, मनु निसु रूप कियौ त्रिपुरारि ।
तिलक ललित ललाट केसरबिंदु सोभाकारि ।
रोष-अरुन तृतीय लोचन, रह्यौ जनु रिपु जारि ।
कंठ कठुला नील मनि, अंभोज-माल सँवारि ।
गरल ग्रीव, कपाल डर इहिं भाइ भए मदनारि ।
कुटिल हरि-नख हिऐँ हरि के हरषि निरखति नारि ।
ईस जनु रजनीस राख्यौ भाल तैं जु उतारि ।
सदन-रज स्याम सोभित, सुभग इहिं अनुहारि ।
मनहुँ अंग बिभूति-राजति संभु सो मधुहारि ।
त्रिदस-पति-पति असन कौं अति जननि सौं करै आरि ।
सूरदास विरंचि जाकौं जपत निज मुख चारि ॥
अर्थ : सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप का वर्णन करते हैं। नन्दलाल श्री कृष्ण की रूप माधुरी को देख-देखकर सभी देव गण और ऋषि मुनियों का समूह थकित(तन मन की सुध भूल जाना) है। भगवान कृष्ण के बाल बिखरे हुए हैं और बिना बहाये हुए हैं। ऐसा लग रहा है मानो सर पर भारी जटा-जुट धारण किये हुए भगवान शंकर ने(कृष्ण के रूप में) शिशु रूप में अवतरण किया है। सुंदर माथे पर अत्यंत शोभाशाली केसर का तिलक है। ऐसा लग रहा है मानो भगवान शंकर ने कामदेव को भस्म करने के लिए अत्यंत क्रुद्ध होकर लाल-लाल तीसरा नेत्र खोल दिया है। श्री कृष्ण के कंठ में नील मणि का कठुला(एक प्रकार की माला) है और गले में सुंदर रूप में बनी रक्तवर्ण कमलों की माला संवर कर धारण की हुई है, ऐसा लगता है मानो मदनारी शंकर गरलपान के कारण नीलवर्णी कंठ और गले में मुण्डमाल लिए सुशोभित हो रहे हैं। हरि(श्री कृष्ण) के ह्रदय प्रवेश में शेर का कुटिल(टेढ़ा) आकर का नख सुशोभित है, उसकी अद्वितीय छटा को देख देखकर ब्रजनारियां अत्यंत प्रसन्न हो रही है; यह हरिनख ऐसा प्रतीत होता है मानो शंकर जी ने अपने भाल से(द्वितीया का) व्रकाकर शशि उतार कर नीचे(ह्रदय प्रवेश में) रख दिया है। श्याम का शरीर घर आंगन की धूलि से लिप्त है(घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित) उसे देखकर लगता है मानो शमशान की राख भस्म शरीर पर लगाये हुए भगवान सोभित हैं। सूरदास जी कहते हैं की वे पर्भु जो त्रिदसपति(इंद्र) के भी स्वामी हैं(सारे संसार की विभूति-सम्पदा के स्वामी हैं) स्वयं ब्रह्मा जी चारों मुखों से जिनका नाम निरंतर जाप करते हैं, वही आज(बालरूप में लीलभाव से) माँ यशोदा से माखन-रोटी के लिए हठ ठाणे हुए हैं। (भला इस सुख का वर्णन कौन कर सकता है)
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