बीमार लेखक के सिर पर दादी किसका लेप करती है?
सौंफ का
दालचीनी का
गुलाब की पत्तियों का
Answers
Answer:
बीमार लेखक के सिर पर दादी दालचीनी का लेप करती है
Explanation:
दादी माँ शिव प्रसाद सिंह जी द्वारा रचित एक सुप्रसिद्ध कहानी है
'दादी माँ' पाठ लेखक और उनकी दादी माँ के बीच मधुर सम्बन्ध की कहानी है। लेखक की दादी माँ बहुत ममतामई , स्नेह, करुणा की मूर्ति थी। लेखक की यह कहानी उनकी दादी माँ के प्रेम और सम्पर्ण को समर्पित है। दादी माँ लेखक के परिवार के सरे मुश्किल दौर में उनके साथ हमेशा बनी रहती थीं। दादी माँ अपने आँचल में शक्तिधारी चबूतरे की मिट्टी लाई थी, जिसे उन्होंने लेखक के मुँह में डाला और सिर पर लगाया ताकि बीमार लेखक शीघ्र स्वस्थ हो जाए।
ममतामई दादी माँ की एक-एक बात आज कैसी-कैसी मालूम होती है। दादा की मौत के बाद से ही वे बहुत गुमसुम सी रहतीं। दादा ने उन्हें स्वयं जो धोखा दिया। वे हमेशा उन्हें आगे करके अपने पीछे जाने की झूठी बात कहा करते थे। दादा की मौत के बाद, कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ने वाले, मुँह में राम बगल में छुरी वाले दोस्तों की शुभचिन्ता ने स्थिति और भी बिगाड़ दी। दादा के श्राद्ध में दादी माँ के न कहने पर भी, पिता जी ने जो बहुत मूल्यवान सम्पत्ति व्यय की वह घर की तो थी नहीं।
दादी माँ अकसर गुमसुम रहा करतीं। माघ के दिन थे। कड़ाके की ठंडी पड़ रही थी। पछुवा का सुनसान और पाले की शीत हड़ियों में समा रही थी। शाम को मैंने देखा, दादी माँ गीली धोती पहने, कोने के घर में एक सन्दूक पर दिया जलाए, दोनों हाथ जोड़कर बैठी हैं। उनकी स्नेह-कातर आँखों में मैंने आँसू कभी नहीं देखे थे।
पाठ 'दादी माँ' हमें यह प्रेरणा देता है कि बड़ों बुजुर्गो की दी गई सीख सदैव मूल्यवान होती है। हमें अपने बुजुर्गों की भावनाओं को हमेशा समझकर उनका आदर करना चाहिए। हमें सदैव उनका पूरा ध्यान रखना चाहिए। जिस प्रकार उन्होंने हमारे लिए चिंता व परवाह की,उसी प्रकार हमें उनकी बुढ़ापे में करनी चाहिए।
बीमार लेखक के सिर पर दादी दालचीनी का लेप करती है.
बीमार लेखक के सिर पर दादी जी दालचीनी का लेप करती है।
Explanation:
क्वार के दिनों में झाग भरे जल में कूदकर नहाने के कारण लेखक बीमार हो गया। लेखक को हल्की बीमारी अच्छी लगती है। परंतु इस समय बुखार चढ़ा तो चढ़ता ही चला गया।कितनी रजाई पर रजाई ओढ़ी तब रात बारह बजे के बाद उतरा और दिन में चादर लपेटकर सोया था। दादी माँ नहाकर बाहर आई थीं और शरीर पर सफेद विना किनारी की धोती थी। बालो से पानी की बूंदें टपक रही थीं।जैसे ही उन्होंने आते ही लेखक का सिर और पेट को छुआ। उन्हे अंदाजा हो गया क्योंकि दादी माँ हाथ, माथा, पेट छूकर भूत, मलेरिया सरसाम, निमोनिया जैसे अनेक बीमारी का अनुमान लगा लेती थीं। वे लौंग, गुड़-मिश्रित जलधार, गुग्गल और धूप ,अन्य से इलाज करती थीं।जल्दी से आँचल की गाँठ खोलकर और चबूतरे की मिद्री मँह में डाली और माथे से लगाई। दादी मां रात-दिन चारपाई के पास बैठी रहती और कभी पंखा झूलती ,कभी सिर पर दाल-चीनी का लेप करतीं और बार-बार हाथ से छूकर बुखार का अनुमान लगातीं।
विकल्प (2) दालचीनी का सही उत्तर हैं।
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