बिमार मित्र की मद्द के उपाए 25 से 30 shab do me likeye
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जब आप एक बीमार दोस्त से मिलने जाते हैं, तो उसकी बात बड़े ध्यान से और हमदर्दी के साथ सुनिए। सुझाव देने में जल्दबाज़ी मत कीजिए और ऐसा मत सोचिए कि आपको उसकी हर समस्या का हल बताना ही बताना है। बिना सोचे-समझे अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने से आप अनजाने में शायद कुछ ऐसी बात कह दें, जिससे सामनेवाले को ठेस पहुँच सकती है। ज़रूरी नहीं कि आपका बीमार दोस्त आपसे अपनी परेशानी का हल चाहता हो। इसके बजाय, वह बस यह चाहता हो कि कोई उसकी बात इत्मीनान से और ध्यान से सुने।
इसलिए अपने दोस्त को खुलकर अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने दीजिए। उसकी बात बीच में ही मत काटिए और ऐसा कुछ मत कहिए, जिससे उसे लगे कि उसकी परेशानी मामूली-सी है। एमिलिओ* की मिसाल लीजिए। वह कहता है, “मैनिन्जाइटिस (दिमाग में एक तरह की सूजन) से मेरी आँखों की रौशनी चली गयी। कभी-कभी मैं बहुत मायूस हो जाता हूँ और मेरे दोस्त दिलासा देने के लिए कहते हैं, ‘चिंता मत करो, तकलीफ झेलनेवाले तुम अकेले नहीं। दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो तुमसे भी बड़ी-बड़ी तकलीफें झेल रहे हैं।’ मेरे दोस्तों को शायद एहसास भी नहीं होता कि मेरी मदद करने के बजाय वे मेरी तकलीफ बढ़ा देते हैं। उनकी बातें सुनकर मैं कभी-कभी खुद को लाचार महसूस करता हूँ।”
अपने बीमार दोस्त को दिल खोलकर बात करने दीजिए, उसे यह नहीं लगना चाहिए कि आप उसकी बातों में नुक्स निकालेंगे। अगर वह कहता है कि बीमारी को लेकर उसे बड़ी चिंता हो रही है, तो उससे यह मत कहिए कि डरने की कोई बात नहीं। इसके बजाय, उसकी भावनाओं को समझिए। एलिआना, जो कैंसर से लड़ रही है कहती है, “अपनी बीमारी के बारे में सोचकर मैं सहम जाती हूँ और फूट-फूटकर रोने लगती हूँ। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मुझे परमेश्वर पर भरोसा नहीं।” आपका दोस्त जिस किसी हाल में है, उसे कबूल कीजिए। ऐसा मत सोचिए कि काश उसकी हालत बेहतर होती। याद रखिए कि इस नाज़ुक घड़ी में वह आपकी किसी भी बात का बुरा मान सकता है और आप पर भड़क सकता है, जो वह आम तौर पर नहीं करता। इसलिए सब्र रखिए