बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं।
तब ये लता लगति अति सीतल¸ अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं।
बृथा बहति जमुना¸ खग बोलत¸ बृथा कमल फूलैं अलि गुंजैं।
इस छंद में कौन सा रस है।
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इस छंद में ‘वियोग श्रृंगार रस’ है और साथ ही इसमें ‘करुण रस’ भी प्रकट होता है।
जब भगवान श्री कृष्ण बृज छोड़कर मथुरा चले गए थे तब ब्रज वासियों का हाल करने के लिए और उनमें ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने के लिए श्रीकृष्ण अपने दूत उद्धवजी को भेजते हैं और उद्धवजी श्रीकृष्ण के विरह व वियोग में व्याकुल गोपियों को ज्ञान का उपदेश देते हैं। तब गोपियां उद्धव को उलाहना देते हुए अपने विरह-वेदना को व्यक्त करती हैं कि श्रीकृष्ण के बिना उनका मन जरा भी नहीं लगता। यह जग उन्हें सूना लगता है। इसमें गोपियां श्रीकृष्ण के प्रति विरह में तड़प रहे हैं।इसलिए इसमें ‘वियोग श्रंगार रस’ है। साथ ही उस तड़पन में एक करुणा भी है इसलिए यहां पर ‘करुण रस’ का भी दर्शन होता है।
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yah Vakya Ek Shringar Ras hai aur Singar Ras ka sthayi bhav hota h Rati
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