Hindi, asked by bishtshyam241, 6 months ago

ब-निम्नलिखित प्र"नों के उत्तर दीजिए
i- परशुराम की स्वभावगत विभीषताएँ क्या हैं? परशुराम लक्ष्मण संवाद के आधार पर लिखिए।
ii- उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है।
ili- लक्ष्मण ने परशुराम के क्रोध करने पर धनुष टूट जाने के कौन-कौन से तर्क दिए?​

Answers

Answered by Anonymous
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Answer the following questions

i-What are the characteristics of Parashurama? Write on the basis of Parashurama Lakshmana dialogue.

ii- Uddhav's behavior has been compared to whom.

ili- What arguments did Laxman give to Sagittarius when Parshuram was angry?

Answered by varsha5644
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Answer:

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

बिहँसि लखनु बोले मृदु बानी । अहो मुनीसु महाभट मानी ।।

पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन फैंक पहारू॥

इहाँ कुम्हड़बतियाँ कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं ।।

देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥

भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कुछ कहहु सह रिस रोकी ।।

सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ।।

बधे पापु अपकीरति हारे । मारतहू पा परिअ तुम्हारे ।।

कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ।।

‘कुम्हड़बतिया’ का उदाहरण क्यों दिया गया है ?

लक्ष्मण के हँसने का क्या कारण है?

‘मुनीसु’ कौन हैं ? लक्ष्मण उनसे बहस क्यों कर रहे हैं?

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बतलाई हैं ?

धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका ही सेवक होगा-के आधार पर राम के स्वभाव पर टिप्पणी कीजिए।

परशुराम जी ने अपने फरसे की क्या विशेषता बताई है ?

लक्ष्मण ने परशुराम से किस प्रकार क्षमा-याचना की और क्यों?

इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं – यह पंक्ति किसने और किस संदर्भ में कही है ?

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद (तुलसीदास)

Answer

‘कुम्हड़बतिया’ (कोंहरा का बतिया यानी कोंहरा का छोटा रूप ) उँगली दिखाने से सड़ जाता है | यहाँ परशुराम लक्ष्मण को तुक्छ समझ कर बार-बार उँगली दिखा रहे थे इसलिए यहाँ कुम्हड़बतिया का उदाहरण दिया गया है |

लक्ष्मण के हँसने का कारण परशुराम की गर्व भरी बातें एवं खुद को परशुराम द्वारा हलके में लेना है ।

परशुरामजी मुनीसु हैं। उन्होंने शिव-धनुष के टूट जाने पर राम को बुरा-भला कहा और बार-बार धनुष दिखाकर दंड देने की बात कही, फलस्वरूप लक्ष्मण अपना पक्ष रखते हुए उनसे बहस कर रहे हैं।

राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित पदों के माध्यम से लक्ष्मण ने वीर योद्धा की विशेषता बताते हुए कहा है कि वीर योद्धा कभी भी धैर्य को नहीं छोड़ता, वह युद्ध भूमि में अपनी वीरता का प्रदर्शन शत्रु से युद्ध करके करता है। बुद्धिमान योद्धा रणभूमि में शत्रु का वध करता है। वह कभी भी अपने मुख से अपनी बड़ाई नहीं करता है। उसकी बढ़ाई तो युद्ध भूमि में उसकी वीरता के कौशल से होती हैं।

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद में यह कोई आपका ही दास होगा वाक्य के आधार पर भगवान श्रीराम शील स्वभाव के होने का पता चलता है। परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास करते हुए राम ने बड़ी ही विनम्र, सील स्वभाव से कहा कि शिव धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई दास होगा-ऐसा कहने से यह पता चलता है कि राम शांत, विनम्र स्वभाव के हैं। उनकी वाणी में मधुरता का गुण विद्यमान हैं। वे जानते थे कि भगवान परशुराम को विनम्रता से ही समझाया जा सकता है।

राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद में गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार भगवान श्री परशुराम जी को अपनी शस्त्र विद्या पर अति विश्वास था। फरसा उनका प्रिय शस्त्र था | जिसके पैनेपन पर उन्हें गर्व था, वो कहते हैं कि उनका फरसा इतना भयानक है कि इसकी भयानक गर्जना से स्त्री के गर्भ में स्थित बालक भी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं और इस फरसे से मैंने हजारों सिरों को धड़ से अलग कर दिया है।

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद में लक्ष्मण ने कहा कि देवता, ब्राह्मण, भगवान के भक्त और गाय-इन पर हमारे कुल में वीरता नहीं दिखाई जाती है। इन्हें मारने पर पाप लगता हैं और इनसे हारने पर अपयश होता है। अतः आप हमें मारेंगे भी तो हम आपके पैर ही पड़ना चाहिगे। हे महामुनि! मैंने कुछ अनुचित कहा हो तो धैर्य धारण करके मुझे क्षमा करना। हम आपसे किसी प्रकार का युद्ध लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहते हैं। आपका आदर सत्कार करना ही हमारा धर्म है।

उपर्युक्त पंक्ति लक्ष्मण जी ने परशुराम जी से उस समय कही जब वे उन्हें बार-बार अपने क्रोध,पराक्रम और प्रतिष्ठा के विषय में बताते हुये उन्हें अपने फरसे की तीक्ष्णता से भी अवगत करा रहे थे जिसे सुन कर लक्ष्मण जी स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सके और प्र्त्युत्तर में बोले कि बार-बार ये कुल्हाड़ा दिखा कर आप मानो फूँक से पहाड़ उड़ाना चाहते हो तो यहाँ कोई कुम्हड बतिया अर्थात कमजोर नहीं हैं जो आपकी तर्जनी देख कर डर जाए। इस लोकोक्ति के द्वारा वे परशुराम जी को सचेत करना चाहते है कि उनकी बातों से वे तनिक भी नहीं डरे,उन्हे अपनी शक्ति और क्षमता पर पूरा विश्वास है और वे उनका घमंड तोड़ने का पूरा साहस रखते हैं। और यदि आपको अपनी क्षमता पर इतना ही घमंड है तो आकर हमसे युद्ध कीजिएगा हम युद्ध के लिए तैयार हैं। हम तो आपको एक ऋषि, महात्मा समझ कर छोड़ रहे हैं। पर हम ब्राह्मण और ऋषि, महात्माओं के साथ युद्ध नहीं करते हैं

Explanation:

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