Hindi, asked by saroj8511551002, 14 days ago

(ब) निम्नलिखित परिच्छेद का सारांश लिखिए:
जिस देश का अन-जल ग्रहण कर हम बढ़ते हैं और जीवित रहते हैं, उस देश की सेवा करना
तथा उसका हितचितन करना हमारा पहला कर्तव्य है। तन-मन-धन से अपने देश की सेवा करने का
नाम ही स्वदेश-सेवा है। स्वदेश-सेवा में सर्वस्व लगाना ही जीवन की सफलता है। यह विवादरहित है
कि किसी भी देश की सेवा का भार उसी देश के रहनेवालों पर होता है। देश पर जब किसी प्रकार
की आपत्ति आती है, तब कायर भी वीर बन जाते हैं। हमें तब यह विचार आता है कि वे सब वस्तुएँ
जिनकी हम प्रतिज्ञा करते हैं, जिनका नाम लेते हैं जिनको पवित्र समझते हैं, जिनसे प्रेम करते हैं- नष्ट-
भ्रष्ट हो जायेगी और यही विचार देशवासियों को चंडी के जैसा प्रचड रूप धारण करने के लिए बाध्य
कर देता है। जब देश किसी प्रकार विपद्ग्रस्त होता है, उस समय जो लोग जीवन को तृणवत् जानकर,
स्वार्थ त्यागकर देश की रक्षा को ही अपना कर्तव्य समझते हैं, उनके नाम इतिहास में अमर हो जाते हैं।
उनको महापुरुष नहीं, देवता मानकर लोग पूजते हैं।​

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Answered by rammilankanojia6
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Answer:

निम्नलिखित परिच्छेद का सारांश लिखिए:

जिस देश का अन-जल ग्रहण कर हम बढ़ते हैं और जीवित रहते हैं, उस देश की सेवा करना

तथा उसका हितचितन करना हमारा पहला कर्तव्य है। तन-मन-धन से अपने देश की सेवा करने का

नाम ही स्वदेश-सेवा है। स्वदेश-सेवा में सर्वस्व लगाना ही जीवन की सफलता है। यह विवादरहित है

कि किसी भी देश की सेवा का भार उसी देश के रहनेवालों पर होता है। देश पर जब किसी प्रकार

की आपत्ति आती है, तब कायर भी वीर बन जाते हैं। हमें तब यह विचार आता है कि वे सब वस्तुएँ

जिनकी हम प्रतिज्ञा करते हैं, जिनका नाम लेते हैं जिनको पवित्र समझते हैं, जिनसे प्रेम करते हैं- नष्ट-

भ्रष्ट हो जायेगी और यही विचार देशवासियों को चंडी के जैसा प्रचड रूप धारण करने के लिए बाध्य

कर देता है। जब देश किसी प्रकार विपद्ग्रस्त होता है, उस समय जो लोग जीवन को तृणवत् जानकर,

स्वार्थ त्यागकर देश की रक्षा को ही अपना कर्तव्य समझते हैं, उनके नाम इतिहास में अमर हो जाते हैं।

उनको महापुरुष नहीं, देवता मानकर

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