बिना सांस्क
ृ
तत के जन की
कल्पना किांधमात्र है; सांस्क
ृ
तत ही जन का मस्स्तष्ट्क है। सांस्क
ृ
तत के ववकास और
अभ््
ुद् के दवारा ही राष्ट्र की वदृ
धध सम्भव है
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