बिन सत्संग विवेक न होई किसका कथन है?
1) तुलसी दास
2)कबीर दास
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Answer:
बिन सत्संग विवेक न होई "यह कथन किनका है
Answer:
1) बिन सत्संग विवेक न होई तुलसी दास कथन है.
Explanation:
प्रभु प्राप्ति और प्रभु के प्रति प्रेम उत्पन्न करने तथा बढ़ाने के लिए सिद्ध पुरुषो को श्रद्धा एवं प्रेम से सुनना सत्संग कहलाता है। जीव की उन्नति सत्संग से होती है. सत्संग से उसका व्यव्हार बदल जाता है। सत्संग से नया जन्म प्राप्त हो जाता है। जैसे, कचरे में चल रही चींटी भी यदि किसी फूल तक पहुँच जाए तो वह देवी देवताओं के मुकुट तक भी पहुँच जाती है। ऐसे ही महापुरूषों के संग से नीच और बुरा इंसान भी भलाई की रह अपना लेता है, अर्थात सदैव कुसंगति से दूर रहना चाहिए और सत्संग की राह अपना लेना चाहिए.
अर्थात इस कथन में गोस्वामी तुलसी दास जी समझाना चाह रहे है, की बिना प्रभु का भजन किये अच्छी बुद्धि या विवेक इंसान नहीं पा सकता है.
इंसान को सत्संग सुनना चाहिए, और उसे अपने जीवन में भी अपनाना चाहिए, और यदि इंसान की संगती ही नास्तिक और बुरे लोगो से होगी तो वह कभी भी परमात्मा को ना समझ पाएगा ना ही उनको पा पाएगा।
अर्थात बिन सत्संग विवेक न होई कथन सत्य है, और प्रभु का नाम भी परम सत्य है यही सब ज्ञान सत्संग के माध्यम से इंसान अपने जीवन में उतार सकता है.