बिना दवा दर्पण की घरनी स्वर्ग चली आंखे आती भर देख रेख के बिना दुधमुंही बिटिया दो दिन बाद गई मर का काव्य सौंदर्य
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प्रसंग- प्रणत काव्याशं प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि मुमित्रानदंन पन द्वारा रचित कविता ‘वे आँखें’ से अवतरित है। कवि किसानों की दुर्दशा का मार्मिक अकन करते हुए कहता है-
व्याख्या-किसान की पत्नी बिना दवा के स्वर्ग चली गई अर्थात् वह धनाभाव के कारण उसका इलाज तक नहीं करवा पाया और वह इसके अभाव में मर गई। इस दशा को याद करके अभी भी उसकी आँखें भर आती हैं। उसके मरने के बाद बेटी की देखभाल के लिए भी कोई न रहा। अत: वह दुधमुंही बालिका भी दो दिन पश्चात् मर गई।
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