"बिना विचारे कार्य नहीं करना चाहिए" विषय पर लघु कथा लिखें।
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बहुत पहले की बात है एक नगर में एक सेठ और सेठानी रहते थे एक दिन सेट एक नेवला के बच्चे को घर ले आया, सेठानी नेवले को देख कर बहुत प्रसन्न हुई, वह बड़े प्यार से उसे पालने लगी, नेवला भी सेट और सेठानी से बहुत प्रेम करता था, कुछ समय बाद सेठानी के एक लड़का पैदा हुआ सेठानी दोनों का पालन पोषण बड़े प्रेम से करने लगी , नेवले के प्रति सेठानी का प्यार पहले जैसा ही रहा,
1 दिन की बात है कि जब लड़का सो रहा था तो सेठानी बाजार चली गई उसी समय कहीं से घर में एक सांप घुस आया, सब धीरे-धीरे लड़के के पास पहुंच गया, यह देखकर नेवले ने सांप को झपट कर मार डाला, तथा उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए,सांप को मारने से उसका मुंह खून से लाल हो रहा था, वह अपनी बहादुरी पर प्रसन्न हो रहा था, वह दरवाजे पर बैठकर सेठानी की प्रतीक्षा करने लगा, जब सेठानी बाजार से वापस आई तो उसने नेवले के मुंह पर खून लगा देखा, उसने सोचा कि आज इस नेवले ने मेरे बच्चे को मार डाला है, क्रोध में आकर उसने नेवले को मार डाला,
जब सेठानी घर के अंदर गई तो उसने देखा कि लड़का तो आराम से सो रहा है और उसके पास एक सांप मरा पड़ा है, यह देखकर वह बहुत पछताए और रोने लगी, कुछ देर के बाद जब सेठ घर आया और उससे रोने का कारण पूछा तो सेठानी बोली- मैंने बिना सोचे इस नेवले को मार दिया हैइसने तो इस सांप से मेरी बच्ची की रक्षा की थी, इस पर सेठ ने कहा कि
" बिना सोचे समझे जो काम करता है
वह इसी प्रकार बाद में पछताता है"
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एक सुंदर सुरम्य झील में बहुत से जलचर बड़े ही प्रेमभाव से रहते थे. उन्हीं में एक केकड़ा और सारस भी थे. दोनों में अच्छी मित्रता थी. सारस को कोई दुख था तो बस यह कि एक सांप आकर उसके अंडे खा जाया करता था.
एक दिन केकड़ा झील के किनारे बैठा था. तभी मुंह लटकाए सारस भी वहीं आ पहुंचा. मित्र का उतरा चेहरा देखकर केकडे ने पूछा, ‘कहो मित्र! यह मुंह क्यों लटका रखा है?’
‘क्या बताऊ मित्र. फिर वहीं कहानी, सांप फिर मेरे अंडे खा गया. न जाने कब तक चलेगा ऐसा.’ सारस दुखी स्वर में बोला, ‘मैं तो पूरी तरह से लाचार हो गया हूं.’
केकड़ा भी अपने मित्र के दुख में शामिल होता हुआ बोला, ‘दिल छोटा मत करों. इस दुष्ट सर्प का अंत करना होगा, मेरे पास एक उपाय है.’ कहकर केकड़ा सारस के कान में कुछ फुसफुसाने लगा. सुनकर सारस की आंखों में आशा की चमक छा गई, ‘ सुझाव तो अच्छा है, अपनी पत्नी को जाकर बताता हूं.’ कहकर सारस अपने घर की और चल दिया.
सारस की पत्नी सांप द्वारा अपने अंडे खा लेने के कारण बहुत दुखी थी, उसने सारी बैट सुनकर भी विशेष उत्साह नहीं दिखाया, बोली, ‘तुम्हें अपनी योजना पर पूरा विश्वास है? देख लो, कहीं कोई कमी न रह जाए और अपने ही प्राणों पर संकट आ पड़े. भली-भांति सोच-विचार कर लो.’
‘सोचने का समय ही कहां बचा है, जो कुछ करना है अभी करना है. तुम चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा.’ कहकर सारस झील की ओर उड़ चला. किनारे पर किसी मछुआरे ने मचलियां सुखाने रखी हुए थी. सारस ने एक मछली चोंच में दबाई और उसे नेवले के बिल के पास डाल दिया. इसी प्रकार उसने कुछ और मचलियां उठाकर थोड़ी-थोड़ी दुरी पर डाल दीं. सबकुछ केकड़े की योजनानुसार हो रहा था.
अपने आसपास मछलियां की गंध पाकर नेवला अपने बिल से बाहर निकला पर मछलियां को खाता हुआ वहां आ पहुंचा, जहां सारस रहता था. पास ही सांप ही सांप भी लेता आराम कर रहा था. दोनों ने एक-दुसरे को क्रोध से देखा और भीड़ गए. कुछ ही देर में नेवले ने सांप को मार डाला. यह देखकर सारस बहुत प्रसन्न हुआ.
लेकिन सारस की यह खुशी अधिक देर न रह सकी. अगले दिन नेवला मचलियां के लोभ में फिर वहां आ निकला. लेकिन उसे यह देखकर बहुत निराशा हुए की आज वहां एक भी मछली नहीं थी. तभी उसकी निगाह पास की झाड़ियों पर पड़ी. उन्हीं झाड़ियों में सारस की पत्नी ने अंडे दिए हुए थे. नेवला झाड़ियों में घुस गया और अंडे खाने लगा. तभी सारस को जोड़ा वहां आ गया. उन्होंने जब नेवले को झाड़ियों में बैठे अंडे खाते देखा तो माथा पिट लिया और अपने भाग्य को कोसने लगे.