बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया essay
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मनुष्य के जीवन में भावना का बड़ा ही उच्च स्थान और महत्त्व है। भावना ने ही एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य के साथ जोड़ रखा है। वह भावना ही है, जिसके रहते घर-परिवारऔर समाज में कोई हमारा दादा है, कोई भैया है, कोई बहन है, कोई माता-पिता आदि;अन्य कुछ। इस प्रकार के भावों, भावनात्मक सम्बन्धों और रिश्तों-नातों पर ही यह जीवन-समाज टिका हुआ है। जिस दिन वास्तव में इस भावना का मनुष्य के मन-जीवन से लोप हो जायेगा, उस दिन सारे रिश्ते-नाते अपने-आप समाप्त हो जायेंगे। समाज तो क्या, घर-परिवारतक बिखर कर अपनी हस्ती गंवा बैठेंगे । आज भावना के स्थान पर हमारी स्वार्थपूर्ण बुद्धि का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। भावना के रिश्तों-नातों के स्थान पर रुपये-पैसे को अधिक मान और महत्त्व मिलने लगा है। इसी तरफ इशारा करते हुए ही किसी ने यह बात कही है कि:
“बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया"
यहाँ 'दादा' और 'भैया' शब्द वास्तव में हमारे भावनात्मक मानवीय सम्बन्धों के प्रतीकहैं। दूसरी तरफ ‘रुपैया' शब्द हमारी स्वार्थमूलक बुद्धि का प्रतीक है। कहने वाले ने इसउक्ति में यही कहा है कि आज भावना के सम्बन्धों का स्थान स्वार्थपूर्ण व्यवहारों ने लेलिया है। आज का मनुष्य धन या रुपये-पैसे को ही अधिक महत्त्व देने लगा है। उसकेलिए बाप-दादा, बहन-भाई सभी कुछ रुपया-पैसा ही बनता जा रहा है। यही उसका धर्म-ईमानसब कुछ बनकर रह गया है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि मात्र हमारे जीवन औरसमाज से मानवतावादी आदर्शों और मूल्यों का महत्त्व निरन्तर गिरता जा रहा है। आज मनतथा आत्मा का कोई स्थान और महत्त्व नहीं रह गया। पास में अगर पैसा है, तो आदमीकुछ भी कर सकता है। वह दूसरों के मन और आत्मा को खरीद भी सकता है।
एक और प्रकार से भी इस कहावत या उक्ति की व्याख्या की जा सकती है। कहाजा सकता है कि आज भावनाओं से सम्बन्ध रखने वाली संस्कृति का मान नहीं रह गया।आज केवल उपभोक्ता-संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया है। इसके प्रभाव से आज मनुष्य औरइसकी भावना को भी एक चीज, एक वस्तु मान लिया गया है, जिसे कुछ पैसे देकर कोईभी खरीद सकता है। इस प्रकार आज खरीदने-बेचने वाली मानसिकता ही निरन्तर बढ़तीजा रही है। ईमानदारी और कर्त्तव्यपरायणता का कतई कोई महत्त्व नहीं रह गया। यदि कोईव्यक्ति ईमानदार रहकर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहता है, तो उसकी कीमत डालनेकी कोशिश की जाती है। कीमत डाल या लोभ-लालच देकर उसे भ्रष्ट कर दिया जाताहै। सरकारी विभागों में यदि कभी भूल से कोई नियमानुसार कार्य करने वाला व्यक्तिजाता है। तो भ्रष्टाचारी लोगों को कहते हए सुना जाता है कि उसकी कीमत जानने कीकोशिश करो' या 'उसकी अधिक से अधिक कीमत डालकर देखो, हर आदमी को खरीदाजा सकता है।' इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस रुपयावादी या धनवादी दृष्टि ने व्यक्तिके धर्म-ईमान, कर्तव्यपरायणता आदि सब कुछ को निगल लिया है। सारी मानवता, मानवताकी सारी व्यवस्थाओं को भ्रष्ट करके भीतर से खोखला और खाली बना दिया है। मनुष्यता,उसकी भावना, उसकी कर्तव्यपरायणता और ईमानदारी आदि किसी का कोई महत्व नहीं,गया!
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