बापू का स्पष्ट मत था कि स्वर्ग का राज्य बच्चों के लिए
था कि स्वर्ग का राज्य बच्चों के लिए है। बच्चों के सिवा उसमें
प्रवेश नहीं कर पाता, क्योंकि बच्चे निर्दोष हुआ करते हैं | उनके जैसा छलरहित, निष्पाप और भोला-अ
संसार में कोई नहीं, अगर किसी बच्चे में अवगुण हैं, कोई बुराई है तो यह उसका दोष नहीं। उसकी अ
पास रहने वाले व्यक्तियों का दोष है, क्योंकि बच्चा जो कुछ सीखता है अपने आस-पास के वातावरण
सीखता है | बच्चों को पीटना बापू की दृष्टि में एक महापाप है। कारण कोई भी हो, कैसा भी अपराध
गया हो, भय दिखाकर या मार-पीटकर बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करना कभी उचित नहीं | बच्चों
गलतियों को उन्हें प्रेम-स्नेह से समझा देना चाहिए | ऐसा करने से उनमें सुधार आ सकता है।
परिच्छेद को उचित शीर्षक दीजिए
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- बापूजी का मत
यह इस परिच्छेद के लिये उचित शीर्षक है
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बापूजी का मत
यह इस परिच्छेद के लिये उचित शीर्षक है
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