बाढ़ प्राकृतिक आपदा है,पर इसकी भयावहिा बढ़ाने के लिए मनुष्य भी जिम्मेवार हैं | इससे आप ककिनें सहमि हैं ? प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए मनुष्य अपना योगदान कैसे दे सकिा है? स्पष्ट कीजिए | Plz answer me. I know its gonna take long buttt plz. I am increasing the points to 50 :) Hope you guys answer fast
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संदर्भ
भारत में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक घटनाएँ बाढ़ की हैं। यद्यपि इसका मुख्य कारण भारतीय मानसून की अनिश्चितता तथा वर्षा ऋतु के चार महीनों में भारी जलप्रवाह है, परंतु भारत की असम्मित भू-आकृतिक विशेषताएँ विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ की प्रकृति तथा तीव्रता के निर्धारण में अहम भूमिका निभाती हैं। बाढ़ के कारण समाज का सबसे गरीब तबका प्रभावित होता है, बाढ़ जान-माल की क्षति के साथ-साथ प्रकृति को भी हानि पहुँचती है। अतः सतत् विकास के नज़रिये से बाढ़ के आकलन की ज़रूरत है।
बाढ़ क्या है?
नदी का जल उफान के समय जल वाहिकाओं को तोड़ता हुआ मानव बस्तियों और आस-पास की ज़मीन पर पहुँच जाता है और बाढ़ की स्थिति पैदा कर देता है। दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में बाढ़ आने के कारण जाने-पहचाने हैं। बाढ़ आमतौर पर अचानक नहीं आती, साथ ही यह और कुछ विशेष क्षेत्रों और वर्षा ऋतु में ही आती है। बाढ़ तब आती है जब नदी जल-वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक जल बहाव होता है और जल, बाढ़ के रूप में मैदान के निचले हिस्सों में भर जाता है। कई बार तो झीलें और आंतरिक जल क्षेत्रों में भी क्षमता से अधिक जल भर जाता है। बाढ़ आने के और भी कई कारण हो सकते हैं, जैसे- तटीय क्षेत्रों में आने वाला तूफान, लंबे समय तक होने वाली तेज़ बारिश, हिम का पिघलना, ज़मीन की जल अवशोषण क्षमता में कमी आना और अधिक मृदा अपरदन के कारण नदी जल में जलोढ़ की मात्रा में वृद्धि होना।
दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में बाढ़ की उत्पत्ति और इसके क्षेत्रीय फैलाव में मानव गतिविधियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। मानवीय क्रियाकलापों, अंधाधुंध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियाँ, प्राकृतिक अपवाह तंत्रों का अवरुद्ध होना तथा नदी तल और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मानव बसाव की वजह से बाढ़ की तीव्रता, परिमाण और विध्वंसता बढ़ जाती है।
भारत के विभिन्न राज्यों में बाढ़
भारत के विभिन्न राज्यों में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण जान-माल का भारी नुकसान होता है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। असम, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की ज़्यादातर नदियाँ, विशेषकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती रहती हैं। राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब आकस्मिक बाढ़ के कारण पिछले कुछ दशकों में जलमग्न होते रहे हैं। इसका कारण मानसूनी वर्षा की तीव्रता तथा मानव कार्यकलापों द्वारा प्राकृतिक अपवाह तंत्र का अवरुद्ध होना है। कई बार तमिलनाडु में बाढ़ नवंबर से जनवरी माह के बीच लौटते मानसून से होने वाली तीव्र वर्षा द्वारा आती है।
बाढ़ के कारण
सामान्यतः भारी बारिश के बाद जब प्राकृतिक जल संग्रहण स्रोतों/मार्गों (Natural Water Bodies/Routes) की जल धारण करने की क्षमता का संपूर्ण दोहन हो जाता है, तो पानी उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डूबा देता है। लेकिन बाढ़ हमेशा भारी बारिश के कारण नहीं आती है, बल्कि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम है, जिन्हें हम कुछ इस प्रकार से वर्णित कर सकते हैं।
मौसम संबंधी तत्त्व: दरअसल, तीन से चार माह की अवधि में ही देश में भारी बारिश के परिणामस्वरूप नदियों में जल का प्रवाह बढ़ जाता है जो विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है। एक दिन में लगभग 15 सेंटीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है, तो नदियों का जलस्तर खतरनाक ढंग से बढ़ना शुरू हो जाता है।
बादल फटना: भारी वर्षा और पहाड़ियों या नदियों के आस-पास बादलों के फटने से भी नदियाँ जल से भर जाती हैं।
गाद का संचय: हिमालय से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ बड़ी मात्रा में गाद और रेत लाती हैं। वर्षों से इनकी सफाई न होने कारण नदियों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिससे आस-पास के क्षेत्रों में पानी फ़ैल जाता है।
मानव निर्मित अवरोध: तटबंधों, नहरों और रेलवे से संबंधित निर्माण के कारण नदियों के जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है, फलस्वरूप बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो जाती है। कुछ सालों पहले उत्तराखंड में आई भयंकर बाढ़ को मानव निर्मित कारकों का परिणाम माना जाता है।
वनों की कटाई: पेड़ पहाड़ों पर मिट्टी के कटाव को रोकने और बारिश के पानी के लिये प्राकृतिक अवरोध पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिये पहाड़ी ढलानों पर वनों की कटाई के कारण नदियों के जलस्तर में वृद्धि होती है।
बाढ़ का परिणाम
असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश (मैदानी क्षेत्र) और ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात के तटीय क्षेत्र तथा पंजाब, राजस्थान, उत्तर गुजरात एवं हरियाणा में बार-बार बाढ़ आने और कृषि भूमि तथा मानव बस्तियों के डूबने से देश की अर्थव्यवस्था तथा समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बाढ़ न सिर्फ फसलों को बर्बाद करती है बल्कि आधारभूत ढाँचा, जैसे- सड़कें, रेल मार्गों, पुल और मानव बस्तियों को भी नुकसान पहुँचाती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की बीमारियाँ, जैसे- हैजा, आंत्रशोथ (Enteritis), हेपेटाईटिस एवं अन्य दूषित जलजनित बीमारियाँ फैल जाती हैं। दूसरी ओर बाढ़ के कुछ लाभ भी हैं। हर वर्ष बाढ़ खेतों में उपजाऊ मिट्टी जमा करती है जो फसलों के लिये बहुत लाभदायक है।
बाढ़: राज्य सूची का विषय है
कटाव नियंत्रण सहित बाढ़ प्रबंधन का विषय राज्यों के क्षेत्राधिकार में आता है। बाढ़ प्रबंधन एवं कटाव-रोधी योजनाएँ राज्य सरकारों द्वारा प्राथमिकता के अनुसार अपने संसाधनों द्वारा नियोजित, अन्वेषित एवं कार्यान्वित की जाती हैं। इसके लिये केंद्र सरकार राज्यों को तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
संदर्भ
भारत में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक घटनाएँ बाढ़ की हैं। यद्यपि इसका मुख्य कारण भारतीय मानसून की अनिश्चितता तथा वर्षा ऋतु के चार महीनों में भारी जलप्रवाह है, परंतु भारत की असम्मित भू-आकृतिक विशेषताएँ विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ की प्रकृति तथा तीव्रता के निर्धारण में अहम भूमिका निभाती हैं। बाढ़ के कारण समाज का सबसे गरीब तबका प्रभावित होता है, बाढ़ जान-माल की क्षति के साथ-साथ प्रकृति को भी हानि पहुँचती है। अतः सतत् विकास के नज़रिये से बाढ़ के आकलन की ज़रूरत है।
बाढ़ क्या है?
नदी का जल उफान के समय जल वाहिकाओं को तोड़ता हुआ मानव बस्तियों और आस-पास की ज़मीन पर पहुँच जाता है और बाढ़ की स्थिति पैदा कर देता है। दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में बाढ़ आने के कारण जाने-पहचाने हैं। बाढ़ आमतौर पर अचानक नहीं आती, साथ ही यह और कुछ विशेष क्षेत्रों और वर्षा ऋतु में ही आती है। बाढ़ तब आती है जब नदी जल-वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक जल बहाव होता है और जल, बाढ़ के रूप में मैदान के निचले हिस्सों में भर जाता है। कई बार तो झीलें और आंतरिक जल क्षेत्रों में भी क्षमता से अधिक जल भर जाता है। बाढ़ आने के और भी कई कारण हो सकते हैं, जैसे- तटीय क्षेत्रों में आने वाला तूफान, लंबे समय तक होने वाली तेज़ बारिश, हिम का पिघलना, ज़मीन की जल अवशोषण क्षमता में कमी आना और अधिक मृदा अपरदन के कारण नदी जल में जलोढ़ की मात्रा में वृद्धि होना।
दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में बाढ़ की उत्पत्ति और इसके क्षेत्रीय फैलाव में मानव गतिविधियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। मानवीय क्रियाकलापों, अंधाधुंध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियाँ, प्राकृतिक अपवाह तंत्रों का अवरुद्ध होना तथा नदी तल और बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मानव बसाव की वजह से बाढ़ की तीव्रता, परिमाण और विध्वंसता बढ़ जाती है।
भारत के विभिन्न राज्यों में बाढ़
भारत के विभिन्न राज्यों में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण जान-माल का भारी नुकसान होता है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। असम, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की ज़्यादातर नदियाँ, विशेषकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती रहती हैं। राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब आकस्मिक बाढ़ के कारण पिछले कुछ दशकों में जलमग्न होते रहे हैं। इसका कारण मानसूनी वर्षा की तीव्रता तथा मानव कार्यकलापों द्वारा प्राकृतिक अपवाह तंत्र का अवरुद्ध होना है। कई बार तमिलनाडु में बाढ़ नवंबर से जनवरी माह के बीच लौटते मानसून से होने वाली तीव्र वर्षा द्वारा आती है।
बाढ़ के कारण
सामान्यतः भारी बारिश के बाद जब प्राकृतिक जल संग्रहण स्रोतों/मार्गों (Natural Water Bodies/Routes) की जल धारण करने की क्षमता का संपूर्ण दोहन हो जाता है, तो पानी उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डूबा देता है। लेकिन बाढ़ हमेशा भारी बारिश के कारण नहीं आती है, बल्कि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम है, जिन्हें हम कुछ इस प्रकार से वर्णित कर सकते हैं।
मौसम संबंधी तत्त्व: दरअसल, तीन से चार माह की अवधि में ही देश में भारी बारिश के परिणामस्वरूप नदियों में जल का प्रवाह बढ़ जाता है जो विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है। एक दिन में लगभग 15 सेंटीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है, तो नदियों का जलस्तर खतरनाक ढंग से बढ़ना शुरू हो जाता है।
बादल फटना: भारी वर्षा और पहाड़ियों या नदियों के आस-पास बादलों के फटने से भी नदियाँ जल से भर जाती हैं।
गाद का संचय: हिमालय से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ बड़ी मात्रा में गाद और रेत लाती हैं। वर्षों से इनकी सफाई न होने कारण नदियों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिससे आस-पास के क्षेत्रों में पानी फ़ैल जाता है।
मानव निर्मित अवरोध: तटबंधों, नहरों और रेलवे से संबंधित निर्माण के कारण नदियों के जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है, फलस्वरूप बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो जाती है। कुछ सालों पहले उत्तराखंड में आई भयंकर बाढ़ को मानव निर्मित कारकों का परिणाम माना जाता है।
वनों की कटाई: पेड़ पहाड़ों पर मिट्टी के कटाव को रोकने और बारिश के पानी के लिये प्राकृतिक अवरोध पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिये पहाड़ी ढलानों पर वनों की कटाई के कारण नदियों के जलस्तर में वृद्धि होती है।
बाढ़ का परिणाम
असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश (मैदानी क्षेत्र) और ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात के तटीय क्षेत्र तथा पंजाब, राजस्थान, उत्तर गुजरात एवं हरियाणा में बार-बार बाढ़ आने और कृषि भूमि तथा मानव बस्तियों के डूबने से देश की अर्थव्यवस्था तथा समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बाढ़ न सिर्फ फसलों को बर्बाद करती है बल्कि आधारभूत ढाँचा, जैसे- सड़कें, रेल मार्गों, पुल और मानव बस्तियों को भी नुकसान पहुँचाती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की बीमारियाँ, जैसे- हैजा, आंत्रशोथ (Enteritis), हेपेटाईटिस एवं अन्य दूषित जलजनित बीमारियाँ फैल जाती हैं। दूसरी ओर बाढ़ के कुछ लाभ भी हैं। हर वर्ष बाढ़ खेतों में उपजाऊ मिट्टी जमा करती है जो फसलों के लिये बहुत लाभदायक है।
बाढ़: राज्य सूची का विषय है
कटाव नियंत्रण सहित बाढ़ प्रबंधन का विषय राज्यों के क्षेत्राधिकार में आता है। बाढ़ प्रबंधन एवं कटाव-रोधी योजनाएँ राज्य सरकारों द्वारा प्राथमिकता के अनुसार अपने संसाधनों द्वारा नियोजित, अन्वेषित एवं कार्यान्वित की जाती हैं। इसके लिये केंद्र सरकार राज्यों को तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करती है।