Hindi, asked by IamDanish31, 6 months ago

बाढ़ प्राकृतिक आपदा है,पर इसकी भयावहिा बढ़ाने के लिए मनुष्य भी जिम्मेवार हैं | इससे आप ककिनें सहमि हैं ? प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए मनुष्य अपना योगदान कैसे दे सकिा है? स्पष्ट कीजिए | Plz answer me. I know its gonna take long buttt plz. I am increasing the points to 50 :) Hope you guys answer fast

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Answered by aadil1290
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Answer:

एक प्राकृतिक आपदा एक प्राकृतिक जोखिम (natural hazard) का परिणाम है जैसे की ज्वालामुखी विस्फोट (volcanic eruption), भूकंप(earthquake) जो कि मानव गतिविधियों को प्रभावित करता है। मानव दुर्बलताओं को उचित योजना और आपातकालीन प्रबंधन (emergency management) का आभाव और बढ़ा देता है, जिसकी वजह से आर्थिक, मानवीय और पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। परिणाम स्वरुप होने वाली हानि निर्भर करती है जनसँख्या की आपदा को बढ़ावा देने या विरोध करने की क्षमता पर, अर्थात उनके लचीलेपन पर। ये समझ केंद्रित है इस विचार में: "जब जोखिम और दुर्बलता (vulnerability) का मिलन होता है तब दुर्घटनाएं घटती हैं". जिन इलाकों में दुर्बलताएं निहित न हों वहां पर एक पर भी एक प्राकृतिक आपदा में तब्दील नहीं हो सकता है, उदहारण स्वरुप, निर्जन प्रदेश में एक प्रबल भूकंप का आना-बाना मानव की भागीदारी के घटनाएँ अपने आप जोखिम या आपदा नहीं बनती हैं, इसके फलस्वरूप प्राकृतिक शब्द को विवादित बताया गया है।

Answered by palak0485
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Answer:

नदियों या जलस्रोत और जलाशयों में अधिक जल आने से अचानक और अस्थाई रूप से किसी भूभाग का जलमग्न हो जाना, बाढ़ (Flood) कहलाता है।

(i) कारण

बाढ़ अतिवृष्टि, तेज हवाएँ, चक्रवात, सुनामी, बर्फ का पिघलना या बांधों का फटना आदि के कारण ही आती हैं। बाढ़ धीरे-धीरे भी आ सकती है या अतिवृष्टि या जल भंडार में दरार या पानी का अधिक भरकर फैलने से अचानक भी बाढ़ आ सकती है। नदियों और तालाबों में गाद जमने के कारण बाढ़ की घटनाओं और उनकी तीव्रता में वृद्धि होती है।

(ii) प्रभाव

हताहत (घायल)

डूबने, गम्भीर चोट, या महामारियों जैस डायरिया, हैज़ा, पीलिया या वाइरल संक्रमण के कारण मनुष्य और पशुओं की मृत्यु बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की सामान्य समस्या है। बाढ़ के समय कुएँ तथा पेयजल के अन्य स्रोत भी जलमग्न हो जाते हैं जिसके कारण शुद्ध पेयजल की बहुत कमी हो जाती है। कभी-कभी लोगों को मजबूरी में बाढ़ का संक्रमित जल ही पीना पड़ता है जिससे गम्भीर रोग पैदा हो जाते हैं।

इमारतों की क्षति (संरचनात्मक क्षति)

बाढ़ के दौरान मिट्टी के घर और कमजोर नींव पर खड़े भवन ढह जाते हैं और जान माल के लिये खतरा और क्षति पैदा हो जाती है। सड़कों, रेल पटरियों, बांधों, स्मारकों, फसलों और पशुओं की भी भारी हानि होती है। बाढ़ों के कारण बड़े-बड़े पेड़ भी उखड़ जाते हैं जिसके कारण भूस्खलन और मृदा-अपरदन हो सकता है।

माल, सामान, सामग्री की क्षति

घरेलू सामान के साथ खाद्य पदार्थ, बिजली के उपकरण, फर्नीचर, कपड़े सब बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं। भूमि पर भंडारित सामान जैसे अनाज, मशीनी उपकरण, गाड़ियाँ, पशुधन, साल्ट पैन (salt pan) और मछली के शिकार की नौकाएँ पानी में डूब कर बेकार हो जाती हैं।

उपयोगी वस्तुओं की क्षति

उपयोगी वस्तुएँ अर्थात जल-आपूर्ति, वाहितमल व्यवस्था (sewerage), संचार-व्यवस्था, बिजली व्यवस्था और परिवहन व्यवस्था, रेलमार्ग सभी बाढ़ के कारण खतरे में पड़ जाते हैं।

फसलों की क्षति

मानव और पशुधन की क्षति के साथ बाढ़ के कारण खेतों में खड़ी लहलहाती तैयार फसल की भी भारी हानि होती है। बाढ़ का पानी भंडारित अनाज के साथ काट कर रखी फसल को भी नष्ट कर देता है। बाढ़ के पानी से मिट्टी की गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ता है। खेत के ऊपर की उपजाऊ मिट्टी पानी के साथ बह जाने से खेत बंजर हो जाते हैं। समुद्री तटों पर स्थित खेतों में समुद्र का खारा पानी भर जाने से वे कृषि के लिये अनुपयोगी हो जाते हैं।

बाढ़ों का नियंत्रण

बाढ़ों को कई प्रकार से नियंत्रित किया जा सकता है। वृक्षारोपण करके (वृक्ष लगा कर) बहकर आने वाले जल की मात्रा कम करने से बाढ़ के पानी का स्तर भी घट जायेगा। जंगल बारिश के पानी को भूमि के अंदर जाने का रास्ता देते हैं। इससे भूमिगत जल स्तर पुनः स्थापित होता है और पानी का व्यर्थ बहना कम हो जाता है। बांधों के निर्माण से पानी का भंडारण होता है और बाढ़ के जल में कमी आती है। बांध पानी को एकत्रित कर सकते हैं, इस कारण पानी नीचे नदियों तक नहीं पहुँच पाता। यदि बांध में एकत्रित पानी सीधा नदियों तक पहुँचे तो बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। बांधों से पानी को नियंत्रित रूप में छोड़ा जाता है। नदी/नहर/नालों से गाद निकालकर उन्हें गहरा करने से और तटों को चौड़ा करने से उनमें अधिक पानी भरने की धारण क्षमता बढ़ जाती है।

(iii) प्रबन्धन

यदि बाढ़ नियंत्रण की उचित योजना और उचित प्रबन्धन तरीकों का नियोजित ढंग से पालन करें तो बाढ़ से होने वाली क्षति और जान-माल की हानि को काफी हद तक रोका जा सकता है और कम किया जा सकता है।

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