बूढ़ी पृथ्वी का दुख कविता पड़कर क्या आपको पृथ्वी के दुख के प्रति संवेदना जगी
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ha mujhe prithvi ke prati sanvedan jagi kyuki ham dharti pe rehte hai. hame iska dhyan rakhna chahiye
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कविता : बूढ़ी पृथ्वी का दुख
कवि : निर्मला पुतुल
' बूढ़ी पृथ्वी का दुख ' कविता पड़कर , हां मुझे पृथ्वी के दुख
के प्रति संवेदना जगी ।
इस कविता में ' पेड़ो की कटाई ' के विषय में पेड़ों कि करुण
वेदना अर्थात् उनके दुख , कष्ट का वर्णन है । इस कविता
से हमारे समक्ष , पेड़ो पर कुल्हाड़ियों का वार और उनके
( कुल्हाड़ियों ) प्रति उनका ( पेड़ो ) भय की वेदना जाहिर
होती है । इस कविता को पढ़ने के पश्चात् हमे यह ज्ञात होता है
कि ,पेड़ो में भी भावनाएं होती है । वह भी हमारे जैसे ही है ।
आखिर उनसे ही हम है ।
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