'बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की ख़ातिर घर-गृहस्थी-जीवन-
जिंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढती
है।' इन पंक्तियों के द्वारा लेखक क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
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