ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वणों को कैसे शरीर का अंग बताया गया है?
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" ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत:।
ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शुद्रोऽजायत।। "
अर्थ :-
ब्राह्मण को समाज रुपी शरीर का मुख बताया गया हैं । मुख जो कुछ भी अनुभव करता है
उसका लाभ पुरे शरीर को देता है । इसी प्रकार समाज में जो लोग ज्ञान - प्रधान हैं और उसका
उपयोग सारे समाज के हित के लिए करते हैं, वे ब्राह्मण कहे जाने योग्य हैं ।
क्षत्रियों को समाज में बाहुओं का स्थान प्राप्त हैं। बाहु शरीर की रक्षा करते हैं । इसी प्रकार
क्षत्रिय अपनी शक्ति का प्रयोग कर पुरे समाज के हित के लिए करते हैं, वे क्षत्रिय हैं ।
वैश्य इस समाज के उरु हैं । सबको रोटी, कपडा, मकान देने का दायित्व वैश्य वर्ण का है ।
शुद्र इस समाज के पैर हैं । पैर ही पुरे शरीर का भार उठाते हैं । अत: शुद्रो का बहुत बड़ा
सहयोग होता हैं ।
ऊरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शुद्रोऽजायत।। "
अर्थ :-
ब्राह्मण को समाज रुपी शरीर का मुख बताया गया हैं । मुख जो कुछ भी अनुभव करता है
उसका लाभ पुरे शरीर को देता है । इसी प्रकार समाज में जो लोग ज्ञान - प्रधान हैं और उसका
उपयोग सारे समाज के हित के लिए करते हैं, वे ब्राह्मण कहे जाने योग्य हैं ।
क्षत्रियों को समाज में बाहुओं का स्थान प्राप्त हैं। बाहु शरीर की रक्षा करते हैं । इसी प्रकार
क्षत्रिय अपनी शक्ति का प्रयोग कर पुरे समाज के हित के लिए करते हैं, वे क्षत्रिय हैं ।
वैश्य इस समाज के उरु हैं । सबको रोटी, कपडा, मकान देने का दायित्व वैश्य वर्ण का है ।
शुद्र इस समाज के पैर हैं । पैर ही पुरे शरीर का भार उठाते हैं । अत: शुद्रो का बहुत बड़ा
सहयोग होता हैं ।
27jenny:
gr8 Explanation✌❤☺
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