बुरा जो देखन मैं चला पर 150 शब्दों के मद अनुच्छेद लिखें
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बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल ढूंढा आपना मुझसे बुरा न कोई।।
इसका अर्थ यह हैं कि जब मैंने संसार में बुरे अर्थात दुष्ट आत्माओं की खोज की तो अंत में मुझे कोई बुरा नहीं मिला, जब मैंने अपनी अंतरात्मा को अंदर से झिंझोड़ा तो पाया कि इस संसार में मुझसे अधिक बुरा कोई नहीं हैं. इसका आशय यह हैं कि जब व्यक्ति स्वयं को भीतर से साक्षात्कार करवाता है तो उसे यह ज्ञान होता है कि अच्छाई व बुराई अंदर ही निहित होती हैं उसे बाहर खोजने की कोई आवश्यकता नहीं हैं.
मानव स्वभाव से अन्तर्मुखी कम तथा बहिर्मुखी अधिक होता हैं. वह अंदर झाँकने समझने और सुधार करने की बजाय बाहरी दिखावे पर अधिक ध्यान देता हैं. वह लोगों की कमियां निकालने उन्हें बिना मांगे सलाह देने तथा छोटी छोटी कमियों पर उन्हें हीन दिखाने की मानसिकता से ग्रस्त रहता हैं. इसी अहम भाव के चलते वह स्वयं को संसार का सबसे गुणी तथा अन्य लोगों को दीन हीन समझने लगता हैं.
अपने इस स्वभाव के कारण मानव न सिर्फ अपनी चंद खूबियों का बखान करता हैं बल्कि दूसरों की कमियों को ढूंढता रहता हैं ऐसा करके उसे अपार संतुष्टि एवं आत्म सुख मिलता है. कबीर दास ने मानव के इस दोगलेपन को एक दोहे के जरिये प्रस्तुत किया हैं.
दुर्जन दोष पराए लखि चलत हसंत हसंत
अपने दोष ना देखहिं जाको आदि ना अंत
हमेशा औरों में बुराई के दुर्गुणों को ढूढने के कारण मानव कभी किसी को अपना स्वीकार नहीं कर सकता, इस बुरी प्रवृत्ति के चलते अपना मानने वाले उनके सच्चे मित्र भी दूरी बना लेते हैं. स्वभाव सेदुर्जन दोष पराए लखि चलत हसंत हसंत
अपने दोष ना देखहिं जाको आदि ना अंत
हमेशा औरों में बुराई के दुर्गुणों को ढूढने के कारण मानव कभी किसी को अपना स्वीकार नहीं कर सकता, इस बुरी प्रवृत्ति के चलते अपना मानने वाले उनके सच्चे मित्र भी दूरी बना लेते हैं. स्वभाव से मानव में अच्छाई तथा बुराई दोनों के भाव विद्यमान रहते हैं. यह देखने वाले पर निर्भर करता हैं कि वह किसे देखना पसंद करता हैं. पूर्व चयनित सोच और बुराई ही देखने की प्रवृति के कारण लोगों के प्रति उनके मनभेद उत्पन्न हो जाते हैं. जो द्वेष वैमनस्य तथा घ्रणा को जन्म देता हैं.
इस तरह के भावों से न व्यक्ति न ही समाज का भला होता हैं बल्कि दिलों में कटुता के बीज बोने का कार्य करता हैं और यही भाव एक दिन उनके विनाश का कारण बनता हैं. हमारी भारतीय संस्कृति दिलों में अच्छाई को ढूढने का संदेश देती हैं तभी तो हम भारतवासी विभिन्न धर्म, जाति, मत मजहब क्षेत्र भाषा में बंटे होने के उपरान्त भी सभी को अपना भाई व बहिन मानते हैं वही यदि एक क्षेत्र, धर्म, जाति के लोगों में अन्य जाति धर्म या क्षेत्र के लोगों में केवल दोष देखने की प्रवृति हैं तो यह उन्माद को जन्म देती हैं जिससे एक जाति या क्षेत्र का व्यक्ति दूसरे जाति क्षेत्र के व्यक्ति को अच्छा नहीं लगता तथा मन ही मन वह उसे अपना दुश्मन मानने लग जाता हैं.
ज्ञानी लोग कभी दूसरों में केवल बुराई का दर्शन नहीं करते हैं ऐसा केवल अज्ञानी ही करते हैं. जिनमें थोडा बहुत विवेक और ज्ञान होता हैं वह दूसरे लोगों की अच्छाई व सद्गुणों के दर्शन भी करते हैं लोगों के बीच उनकी प्रशंसा करते हैं तथा जीवन में उन गुणों को अपनाने का प्रयास करते हैं. मानव में अच्छे बुरे दोनों गुण होते हैं, एक सज्जन व्यक्ति दूसरे में बुरे गुण अर्थात अवगुण देख कर मित्र भाव से उनमें सुधार कर सही राह पर लौट आने की प्रेरणा देता हैं.