बेरुजगारी के मुख कारण
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jansankhya population
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☆भारत की ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में विस्तृत बेरोजगारी एक जटिल समस्या है जिसके अनेक कारण हैं जिनकी व्याख्या नीचे की गई है:
☆1. वृद्धि की धीमी गति
☆बेरोजगारी का मुख्य कारण वृद्धि की धीमी गति है । रोजगार का आकार, प्रायः बहुत सीमा तक, विकास के स्तर पर निर्भर करता है । आयोजन काल के दौरान हमारे देश ने सभी क्षेत्रों में बहुत उन्नति की है । परन्तु वृद्धि की दर, लक्षित दर की तुलना में बहुत नीची है । स्पष्ट है कि बी. हजारी और के. कृष्णामूर्ति ने विकास की प्रारम्भिक स्थिति में वृद्धि और रोजगार के बीच के संघर्ष का सही अवलोकन किया है, जोकि बेरोजगारी का मुख्य कारण है ।
☆2. पिछड़ी हुई कृषि (Backward Agriculture):
☆भारत में अल्प विकास और बेरोजगारी का भयंकर स्वरूप पिछड़ी हुई कृषि के कारण है जिससे कार्यों की प्रकृति भी पिछड़ जाती है । कृषि की विधियां अथवा तकनीकें और संगठन आरम्भिक है तथा पुराने हो चुके हैं । फलतः कृषि की उत्पादकता प्रति श्रमिक अथवा श्रम की प्रति इकाई के पीछे कम है । जनसंख्या का 70% भाग स्पष्ट अथवा अस्पष्ट रूप में कृषि पर निर्भर है ।
भूमि के आकार खर्चीले हैं । संस्थानिक सुधार जैसे भूमि सुधार, चकबन्दी, भूमिधारिता की सीमा और काश्तकारी सुधार राजनीतिक एवं प्रशासनिक अदक्षता और किसानों के असहयोगी व्यवहार के कारण लक्षित उद्देश्य प्राप्त नहीं कर पाये । इन परिस्थितियों में कृषि में अल्प रोजगार का होना प्राकृतिक है ।
☆3. विस्फोटक संख्या वृद्धि (Explosive Population Growth):
☆भारत वर्ष 1951 से विस्फोटक जनसंख्या वृद्धि का अनुभव कर रहा है । वास्तव में, जनसंख्या में 2.5% वार्षिक वृद्धि हुई । इसलिये रोजगार की स्थिति दो प्रकार से विपरीत रूप में प्रभावित हुई, पहले तो श्रम शक्ति की संख्या का बढ़ना और दूसरे पूंजी निर्माण के लिये साधनों का कम होना ।
अनुमान लगाया गया है कि सातवीं योजना में श्रम शक्ति में 390 लाख लोग जोड़े जायेंगे । यह तथ्य इस बात की ओर स्पष्ट सकेत करता है कि देश में जनसंख्या की वृद्धि रोजगार के अवसरों की वृद्धि से अधिक है । दूसरे प्रकरण में, वर्तमान साधन बचतों और निवेश के लिये अपवर्तन का सामना नहीं कर सकते, अतः पूंजी निर्माण का दर नीचा होगा ।