Hindi, asked by soumitra9905, 7 days ago

बारिश की एक बूंद की जीवन "यात्रा" कहानी के रूप में लिखिए

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Answered by sidgaikwad2965
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Explanation:

मुझ मासूम सी कोमल बूंद में झांक कर देखो तो मिलेगा ईश्वर का मुस्कुराता रूप। जो देगा ऐसा आनंद जैसे तुम्हारे मन की कोई कच्ची प्रार्थना सुन ली गई हो और बरस रहे हों आकाश कुसुम। मुझ मोती जैसी बूंदों को बरसते देख सारी प्रकृति ही झूम उठती है।

मेरे अंतस की प्रतिध्वनियाँ तुम्हारे जीवन में भरती हैं खुशियां। जग फुनगियों पर टपकती बारिश की आखिरी बूंद पर शाम की धूप की आखिरी किरण जगमगा जाती है और इन्द्रधनुषी रंग बिखेरती उसी तरह प्रारंभ से अंत तक मैं तुम्हारे रगों में जीवन का संदेश देकर आशा की किरण तुम्हारे अंतस में जिलाये और जगाये रखती हूँ।

मैं हूँ नन्हीं सी एक बूंद, कभी गुलाब की पंखुड़ियों पर ठहरी ओस की एक बूंद, तो कभी आकाश से बरसती पानी की बूंद। बरसना तो मेरी नियति है। मै बहती हूं तो जीवन बहता है मै रूकती हूँ तो रूक जाता है जीवन। सूखती हूँ तो पड़ जाता है सूखा। सूख जाते हैं जीव वनस्पति के प्राण।

जब तुम गर्मी में तपते हो मैं भी तपती हूँ सागर में, नदियों में, नहरों और अपनी लहरों में। जानते हो कि आग की लपटों, सूरज की किरणों, दहकते भट्टो और पसरे धधकते रेगिस्तानों मे तपन झेलती हूँ। सूखी जाती हूँ यहाँ तक कि धरती के भीतर रिस कर बच नहीं पाती, कहीं संरक्षण नहीं पाती। पत्र भर छांह का ठौर नहीं पाती। कलप कलप कर जल कर मर जाती हूँ।

मेरी आत्मा उपर से देखती है तुम्हारी बदहाली। देखती है कितने बेजुबान निरपराध पशुपक्षी को भूख प्यास से तड़प तड़प प्राण त्याग रहे हैं। मैं फिर से सहानुभूतिवश झुक जाती हूँ। बादल बन कर उड़ते उड़ते ढ़ाढ़स देती हूँ कि तुमने बहुत गर्मी झेल ली। बस जरा धीरज धरो अब मैं बरसने को हूँ।

मैं जानती हूँ कि मुझमें जो ठंडक है वो चांद की चांदनी में भी नहीं और हिम शिखर की हिमबिंदुओं में भी नहीं मिलेगी क्योंकि वहां तो ढिढुरन और सूखापन है। मेरी जैसी शीतल निर्मल स्नेह धारा कहाँ तुम पाओगे। यही सोच का भाव सघन मुझे सघन घन बनाता है। मैं काले घने बादल बन छा जाती हूँ सारे आकाश में ऐसे जैसे मां अपना ममतामय आंचल फैलाती है विपत्ति की बेला में अपने बच्चों के सिर पर सांत्वाना और सुरक्षा के खातिर।

मैं

अंत में बस इतना ही कहना है ………

जो सहेजोगे मेरी बूंदो को तो जिंदगी सुहानी बनेगी ,वरना…

तबाही की कहानी बनेगी ।

इसीलिये बरसती हूं झरती हूँ और बहती हूँ बस बहती ही रहती हूँ हर हाल ताकि बूँद बूँद को न तरसे जीवन।

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