Hindi, asked by deepaksingh73142, 9 months ago

बारिश के दिनों में हमें क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए इस विषय पर लगभग 100 शब्दों में अपने विचार दीजिए​

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Answered by sj4362860
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बारिश के मौसम में जलजनित रोगों का प्रकोप होता है साथ ही जठराग्नि शिथिल हो जाने से बहुत ही जल्दी पेट खराब भी होता है। त्वचा के रोगों के साथ-साथ मलेरिया, डेंगू, वायरल फीवर, टायफाइड जैसी बीमारियां भी शरीर पर डेरा डाल लेती हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में खेतों में नंगे पैर घूमने से लेप्टोस्पायरोसिस नामक बीमारी हो जाती है

मच्छरों के काटने से खुद का बचाव करना इसके रोकथाम का पहला मंत्र है। इसके लिए रात को सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग, घर के आसपास पानी न इकट्ठा होने देना और नालियों में डीडीटी का छिड़काव जैसे तरीके अपनाए जा सकते हैं। मलेरिया के लक्षण दिखते ही तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने में ही समझदारी है।

जलजनित रोगों में सबसे अहम है पीलिया। बारिश के मौसम में प्रायः ड्रेनेज का पानी पेयजल की पाइप लाइन में पहुँच जाता है। इससे हेपेटाइटिस 'ए', 'बी', तथा 'ई' वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है। आमतौर पर लोग पीलिया को बहुत गंभीरता से नहीं लेते। पहले झाड़-फूँकसे ठीक कराने की कोशिश करते हैं। पीलिया के लक्षण मलेरिया, डेंगू से मिलते-जुलते हैं और यही वजह है कि मरीज का पहले मलेरिया या डेंगू का इलाज किया जाता है। दूषित पेयजल से होने वाली दूसरी बड़ी बीमारी है उल्टी और दस्त होना। पेट खराब होने के लिए स्ट्रीटफूड अधिक जिम्मेदार है खासकर बारिश में। सड़क के किनारे पर बिकने वाले पानी पताशे या कचौरी-समोसे कितने संक्रमित हो चुके हैं इसका अंदाजा लगाना ही कठिन है। जाहिर है कि संक्रमण के ये सबसे बड़े स्रोत हैं। खुले खाद्य पदार्थों पर मक्खियों का साम्राज्य होता है, जिससे टाइफाइड होने का जोखिम सबसे अधिक होता है।

जहाँ तक हो सके बारिश के मौसम में पानी उबालकर पीना ज्यादा फायदेमंद होता है, लेकिन अधिक लंबे समय तक यह प्रयोग न करें।

बारिश में अत्यधिक आर्द्रता होती है जिससे त्वचा में फंगस पैदा होने के अवसर काफी अधिक होते हैं। दोनों जांघों के बीच के जोड़ तथा बगलों में अथवा गरदन पर फंगस के कारण दाद, खाज, खुजली हो जाती है। गीले या नम कपड़ों में देर तक रहने से त्वचा अधिक संवेदनशील हो जाती है तथा वहाँ खुजली होने लगती है। अस्थमा के मरीजों पर हर साल बारिश बहुत भारी गुजरती है। वे भरसक अपना बचाव रखें ताकि दमे का दौरा न पड़े। इसके साथ ही जाम, सीताफल, अंगूर, केला, दही, कोल्ड्रिंक तथा आइसक्रीम का सेवन न करें। सर्दी-जुकाम होने पर जल्दी इलाज कराएं।

लेप्टोस्पायरोसिस को फील्ड फीवर, रैट काउचर्स यैलो और प्रटेबियल बुखार के नाम से भी जाना जाता है। ये एक संक्रमण है जो लेप्टोस्पाइरा कहे जाने वाले कॉकस्क्रू आकार के बैक्टीरिया से फैलता है। बैक्टीरिया से फैलने वाला लेप्टोस्पाइरोसिस रोग बारिश के मौसम में सबसे ज्यादा होता है। यह रोग ऐसा है जो खुद ही कई और रोगों को पैदा करने का कारण भी हो सकता है। इस रोग का बैक्टीरिया मानव में सीधे ही प्रवेश न करके जीवों जैसे भैंस, घोड़ा, बकरी, कुत्ता आदि की सहायता से प्रवेश करता है और इस बैक्टीरिया का नाम है लैप्टोस्पाइरा। यह बैक्टीरिया इन जानवरों के मूत्र विसर्जन से प्रकृति में आता है। यह नमी युक्त वातावरण में लम्बे समय तक जीवित रहता है। इसके लक्षणों में हल्के-फुल्के सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और बुखार से लेकर फेफड़ों से रक्तस्राव या मस्तिष्क ज्वर जैसे गंभीर लक्षण शामिल हो सकते हैं।

बारिश के मौसम में स्वस्थ रहने के लिए गर्मी देने वाले पदार्थों का सेवन करना चाहिए जैसे मूंग की दाल, मट्ठा, नीम्बू, अंजीर और खजूर इत्यादि। पानी उबालकर ही पीना चाहिए। प्रतिदिन हरड़ के चूर्ण के साथ सेंधा नमक का सेवन करना चाहिए। अधिक वर्षा के दिनों में लवणयुक्त खट्टे पदार्थों का सेवन करना चाहिए। तेल लगाकर नहाना चाहिए। पहनने के वस्त्रों को अकसर धूप में सुखाना चाहिए।

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