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बुरेतदन अच्छेकै सेहोंगे?

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अच्छे दिन बुरे दिन ( व्यंग्य )

May 23, 2014, 9:40 PM IST शक्ति प्रकाश in गोखरू | मेरी खबर

अच्छे दिन वाकई आ ही गए, दिन इतना अच्छे तरीके से आयेंगे ये इस जुमले के रचयिता को भी पता नहीं होगा और इस तरह से आयेंगे कि अकेले मोदी जी और उनके चेले ही नहीं बल्कि हैदराबादी ओवैसी जो हैदराबाद को आधे घंटे में हिन्दू मुक्त करने की हैसियत रखते हैं, भी दो लाख वोटों से जीतेंगे इसका अनुमान हमें भी नहीं था. हालाँकि एग्जिट पोल के बाद से टी.वी.चैनलों पर मोदी पुराण पाठ की प्रतियोगिता सी चल गई थी. इसमें कोई बड़ी बात भी नहीं, धंधे की बात है जो दिखेगा सो बिकेगा, प्रतियोगिता इतनी बढ़ी कि एक टी.वी. चैनल ने तो रिजल्ट आने के दो दिन पहले ही बाकायदा मुकुट, चक्र और चार हाथ लगाकर मोदी जी की तस्वीर नरसिंह अवतार में दिखा दी और शब्दों से उनकी तुलना भी नरसिंह अवतार से कर दी, आश्चर्य तब हुआ जब माता सरस्वती के चित्र के दुरूपयोग को लेकर आन्दोलन करने वालों ने भगवान नरसिंह के दुरूपयोग पर एक शब्द न बोला, बल्कि शायद हम जैसे निठल्लों के अलावा किसी ने गौर भी न किया होगा.

इससे एक बात साफ हुई – ‘जनता मेहरबान तो मोदी भगवान’ और जो साफ़ हुआ वो ये कि महत्व उपलब्धि का है, योग्यता दीगर बात है. बात योग्यता की हो तो एक बेचारा चायवाला योग्यता के दम पर भगवान बनने का सपना कहाँ देख सकता है? अब ये उसकी उपलब्धि ही है कि लोग उसे बिना पूछे नरसिंह बनाए दे रहे हैं. बात सिर्फ योग्यता की ही हो तो कोई ऐसा मंचीय कवि जिसकी मशहूर तुकबंदी की तुक न मिलती हो, किस बूते पद्म पुरस्कारों को जूते की नोक पर रख सकता है? ये उनकी राजनैतिक उपलब्धियां ही थीं जो अब तक के साहित्य अकादमी विजेताओं और पद्म पुरस्कार विजेताओं को जूते दिखा दिए. वो तो एस्टीमेशन थोडा गड़बड़ हो गया जो मोदी जी का कलमा पढ़ते पढ़ते मर्शिया पढ़ दिया वर्ना यदि स्तुति गान पर टिके रहते तो कौन जाने साहित्य और पद्म पुरस्कार मंत्री वही होते. पर जब किसी के अच्छे दिन आते हैं तो किसी के बुरे दिन भी आते ही हैं, वरना चार महीने की मेहनत, तीन लाख रूपये शाम की कमाई छोड़कर, जेब की रकम लगाकर लोकसभा चुनाव में बीस पच्चीस हज़ार वोट आना बुरे दिन के अलावा क्या है? इतने वोट मथुरा में डुप्लीकेट हेमा मालिनी, चांदनी चौक में डुप्लीकेट आशुतोष और इनसे तीन गुने वोट तो दिल्ली में फर्जी जरनैल सिंह बिना दमड़ी खर्च किये केवल नामांकन कर ले आये, बल्कि कई जगह तो नोटा बटन ही उनके महारथियों पर भारी पड़ गया, खैर अच्छे दिन भले गा बजाकर आते हों, बुरे दिन बिना पूर्व सूचना के ही आते हैं. मेधा ताई, जावेद भाई जैसे भले और भोले लोग साठ सत्तर हज़ार का आंकड़ा शायद ही छू पाए हों, बुरे दिन बिना बताये इस तरह ही कद कम कराते हैं.

अब यही बात कोई पप्पू भैया से पूछ ले, अब अच्छे दिन छोडिये किसी ने ‘अच्छा’ शब्द भी उनके सामने बोल दिया तो उसकी खैर नहीं, पप्पू भैया छोडिये, उनके अनुयायी इस शब्द से परहेज़ कर रहे हैं, अभी एक मिल गए

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