बीरबल की चतुराई का किस्सा अपने शब्दों में लिखें 10 lines
Answers
Answer:
तभी एक कारागीर हाथों में पत्थरों से निर्मित एक फूलों का बड़ा-सा गुलदस्ता लेकर आया और राजा को गुलदस्ता देकर जाने लगा। राजा ने गुलदस्ता हाथ में लिया और उसकी सुंदरता देखकर गुलदस्ते की बहुत तारीफ की। और अपने खजाने के मंत्री को आदेश दिया कि 'इस कारीगर को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं इनाम के तौर पर दी जाएं।'
इनाम लेकर कारीगर खुशी-खुशी बाहर चला गया तभी अकबर के बगीचे का माली आया और एक बड़ा-सा गुलदस्ता को राजा को भेंट किया। इतना सुंदर गुलदस्ता देखकर राजा उसकी भी तारीफ किए बिना न रह सका। अकबर ने फिर अपने मंत्री को आदेश दिया और कहा- 'माली को सौ चांदी की मुद्राएं इनाम के तौर पर दी जाए।'
बस फिर क्या था, राजा का इतना आदेश हुआ कि बीरबल चतुराई भरा मुंह बनाकर दरबार में दाखिल हुए। पहले तो अकबर बीरबल पर बहुत नाराज हुए और कहने लगे, 'शायद सभी दरबारी ठीक ही कहते हैं! मैंने ही तुम्हें जरूरत से ज्यादा तवज्जों दी है। इसीलिए तुम यूं बीच में ही राज दरबार छोड़कर चले गए और मेरे सवाल का जवाब भी नहीं दिया।'
अकबर का इतना कहना ही हुआ कि बीरबल ने अकबर को प्रणाम करते हुए कहा - 'जहांपनाह, आप कुछ भूल रहे हैं। अभी-अभी जो दो कारीगर यहां उपस्थिति देकर गए हैं। उन्हें आपके पास भेजने के लिए ही मैं बाहर गया था। आपने यह कैसा न्याय किया, दो कारीगरों के साथ। एक को हजार स्वर्ण मुद्राएं और दूसरे को सिर्फ सौ चांदी की मुद्राएं।'
अकबर ने जवाब दिया- 'असली फूलों का गुलदस्ता तो दो दिनों में ही मुरझा जाएगा और यह पत्थर से निर्मित गुलदस्ता कभी भी खराब नहीं होगा इसीलिए।'
अकबर का इतना कहना ही था कि बीरबल ने अपना चतुराई भरा बाण छोड़ा और बोले- 'तो फिर आप भी मान गए ना कि मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तु कुदरत के द्वारा निर्मित वस्तु से ज्यादा अच्छी है।'
अब जहांपनाह की बोलती ही बंद हो गई। वे बीरबल की चतुराई देखकर मन ही मन मुस्काएं और फिर से अपने सिंहासन पर बैठ गए।
सिंहासन पर बैठकर अकबर ने फिर एक बार बीरबल की खुले दिल से तारीफ की और सब दरबारी अपना मुंह लटका कर अपने-अपने कुर्सी पर बैठ गए। एक बार फिर बीरबल अपनी चतुराई दिखाने में कामयाब हो गए।
Answer:
र उसकी सुंदरता देखकर गुलदस्ते की बहुत तारीफ की। और अपने खजाने के मंत्री को आदेश दिया कि 'इस कारीगर को एक हजार स्वर्ण मुद्राएं इनाम के तौर पर दी जाएं।'
इनाम लेकर कारीगर खुशी-खुशी बाहर चला गया तभी अकबर के बगीचे का माली आया और एक बड़ा-सा गुलदस्ता को राजा को भेंट किया। इतना सुंदर गुलदस्ता देखकर राजा उसकी भी तारीफ किए बिना न रह सका। अकबर ने फिर अपने मंत्री को आदेश दिया और कहा- 'माली को सौ चांदी की मुद्राएं इनाम के तौर पर दी जाए।'
बस फिर क्या था, राजा का इतना आदेश हुआ कि बीरबल चतुराई भरा मुंह बनाकर दरबार में दाखिल हुए। पहले तो अकबर बीरबल पर बहुत नाराज हुए और कहने लगे, 'शायद सभी दरबारी ठीक ही कहते हैं! मैंने ही तुम्हें जरूरत से ज्यादा तवज्जों दी है। इसीलिए तुम यूं बीच में ही राज दरबार छोड़कर चले गए और मेरे सवाल का जवाब भी नहीं दिया।'
अकबर का इतना कहना ही हुआ कि बीरबल ने अकबर को प्रणाम करते हुए कहा - 'जहांपनाह, आप कुछ भूल रहे हैं। अभी-अभी जो दो कारीगर यहां उपस्थिति देकर गए हैं। उन्हें आपके पास भेजने के लिए ही मैं बाहर गया था। आपने यह कैसा न्याय किया, दो कारीगरों के साथ। एक को हजार स्वर्ण मुद्राएं और दूसरे को सिर्फ सौ चांदी की मुद्राएं।'
अकबर ने जवाब दिया- 'असली फूलों का गुलदस्ता तो दो दिनों में ही मुरझा जाएगा और यह पत्थर से निर्मित गुलदस्ता कभी भी खराब नहीं होगा इसीलिए।'
अकबर का इतना कहना ही था कि बीरबल ने अपना चतुराई भरा बाण छोड़ा और बोले- 'तो फिर आप भी मान गए ना कि मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तु कुदरत के द्वारा निर्मित वस्तु से ज्यादा अच्छी है।'
अब जहांपनाह की बोलती ही बंद हो गई। वे बीरबल की चतुराई देखकर मन ही मन मुस्काएं और फिर से अपने सिंहासन पर बैठ गए।
सिंहासन पर बैठकर अकबर ने फिर एक बार बीरबल की खुले दिल से तारीफ की और सब दरबारी अपना मुंह लटका कर अपने-अपने कुर्सी पर बैठ गए। एक बार फिर बीरबल अपनी चतुराई दिखाने में कामयाब हो गए।
Explanation: