बिरह भुवंगम’ में कौन- सा अलंकार है ? a) अनुप्रास b) उपमा c) रुपक d) दृष्टांत
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रूपक अंलकार
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बिरह भुवंगम’ में रूपक अलंकार है ।
विकल्प ( c )
- जहां उपमेय व उपमा में अंतर न दिखाई दे वहां रूपक अलंकार होता है अर्थात जहां उपमेय व उपमा के बीच भेद समाप्त करके एक कर दिया जाता है वहां रूपक अलंकार होता है।
- अनुप्रास अलंकार में एक ही वर्ण की पुनरावृत्ति होती है। अनुप्रास शब्द, दो शब्दों से बना है अनु जिसका अर्थ है बार बार तथा प्रास जिसका अर्थ है वर्ण।
- बिरह भुवांगम तन बसै, मंत्र न लागे कोइ राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो भौरा होई।
- ये पद संत कबीर दास जी के है , इन पदों में कबीर जी ने विरही मनुष्य की स्थिति की चर्चा की है। वे कहते है कि विरह रूपी सर्प शरीर में निवास करता है, उस पर किसी प्रकार का मंत्र या उपाय काम नहीं करता। उसी प्रकार राम अर्थात ईश्वर के वियोग में मनुष्य भी जीवित नहीं रह सकता।
- यदि वह जीवित रहेगा तो अपने नियंत्रण में नहीं रहेगा। वह पागल हो जाएगा।
- वह अजीब अजीब हरकतें करेगा।
- रूपक अलंकार का अन्य उदाहरण है
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
बिरह भुवंगम’ में रूपक अलंकार है ।
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