Hindi, asked by parvezkhan35, 10 months ago

बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।​

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Answered by StrankraDeolay
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Answered by Anonymous
3

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सन्दर्भ — यह पंक्तियां कबीर दास जी की साखी से ली गई हैं। यह साखी अधूरी है.. पूरी साखी इस तरह होगी...

बिरह भुवंगम तन बसै , मंत्र न लागै कोइ।

राम बियोगी ना जिवै ,जिवै तो बौरा होइ।।  

प्रसंग — इस साखी में कबीरदास जी ने ईश्वर के वियोग में मनुष्य की दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या — कबीर दास जी कहते हैं, जब मनुष्य अपने किसी अपने से बिछड़ जाता है तो बिछड़ने के दुख में निरंतर दुखी रहता है, वेदना से पीड़ित रहता है। उसी तरह भक्त और ईश्वर के बीच का संबंध है। सच्चा भक्त भी अपने ईश्वर से दूर नहीं रह सकता। प्रभु के वियोग में वो जीवित नहीं रह सकता और यदि जीवित रह भी जाए तो वह पागल हो सकता है। विरह-वेदना रूपी नाग उसे निरंतर डसता रहता है। इस वेदना को यदि कोई समझ सकता है तो स्वयं प्रभु ही समझ सकते हैं।

Explanation:

साखी से तात्पर्य साक्षी से है, जो संस्कृत का तद्भव रूप बनकर हिंदी में साखी बन गया। साक्षी साक्ष्य का विशेषण जिसा अर्थ है, प्रत्यक्ष ज्ञान। इस प्रकार साखी जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा प्राप्त प्रत्यक्ष ज्ञान हैं।

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