‘बिरह भुवंगम तन बसै मंत्र न लागे कोय |’ – का भाव स्पष्ट कीजिये |
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बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।
एक इंसान जब अपने किसी प्रिय वस्तु या व्यक्ति से अलग होता है तो उसके अंदर विरह की भावना आ जाती है जब इंसान के अंदर विरह की भावना होती है तो वह विलाप करता है और सिर्फ कोई दवा दुआ असर नहीं करती. उसी प्रकार कवि ने कहा है कि राम यानी भगवान से जिसका वियोग हो जाए वह जी नहीं सकता और यदि वह जिएगा तो वह पागलों वाली जिंदगी जिएगा
Answer:
विरह की वेदना (बिछड़ने का दुःख ) जिस प्रकार किसी व्यक्ति को मन ही मन काटती रहती है, उसे कोई मंत्र (उपचार) भी नहीं लगता है, ऐसे ही राम से प्रेम करने वाले व्यक्ति को भी मन ही मन संताप रहता है (मन में विरह का सांप काटता रहता है ) और उसका जीवित रहना सम्भव नहीं होता है, यदि वह जीवित रह भी जाए तो पागल के समान ही रहता है। पागल के समान इसलिए बताया गया है क्योकि यह जगत 'माया ' की भाषा को समझता है, माया के इतर किये गए कार्य और व्यवहार को समाज अव्यवहारिक और असामान्य मानते हुए उस व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर शक करके उसे पागल कहने लगते हैं। वस्तुतः ईश्वर के रंग में रंगा बैरागी सबसे जुदा होता है तभी तो बुल्ले शाह कहते हैं, मैं क्यों ना पांवो में घुंघरू बाँध के मुरशद को मनाऊँ ?