ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में, मनुज नहीं लाया है
अपना सुख उसने अपने, भुजबल से ही पाया है,
प्रकृति नहीं डरकर झुकती है, कभी भाग्य के बल से
सदा हारती वह मनुष्य के , उद्यम से, श्रम-बल से
ब्रह्मा का अभिलेख पढ़ा, करते निरुद्यमी प्राणी
धोते वीर कु- अंक भाल के, बहा ध्रुवों से पानी
भाग्यवाद आवरण पाप का , और शस्त्र शोषण का
जिससे रखता दबा एक जन, भाग दूसरे जन का। is padansay se hame kya prerana milti hai
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➲ इन पंक्तियों से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य को अपने भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। मनुष्य अपने भाग्य में कुछ लिखाकर नहीं लाता। वह जो कुछ भी इस संसार में आकर पाता है, वह अपने भुजबल अर्थात अपने श्रम और प्रयासों से ही पाता है। वह अपने भुजबल अर्थात अपने श्रम और प्रयास से ही पाता है। जो मनुष्य कर्मयोगी होते हैं, वह भाग्य की परवाह नही करते। वह अपने श्रम के बल पर अपने भाग्य का स्वयं निर्माण करते हैं।
इसलिए इन पंक्तियों से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें अपने भाग्य के भरोसे ना बैठ कर कर्म करना चाहिए। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है।
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