ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में
मनुज नहीं लाया है
अपना सुख उसने अपने
भुजबल से ही पाया है
प्रकृति नहीं डरकर झुकती है
कभी भाग्य के बल से
सदा हारती वह मनुष्य के
उद्यम से श्रम-जल से
ब्रह्मा का अभिलेख पढ़ा
करते निरुद्यमी प्राणी
धोते वीर कु-अंक भाल के
बहा ध्रुवों के पानी
भाग्यवाद आवरण पाप का
और शस्त्र शोषण का
जिससे रखता दबा एक जन
भाग दूसरे जन का
(i) ’शोषण का शस्त्र’ किसे कहा गया है ?
(क) परिश्रम को
(ख) भुजबल को
(ग) भाग्यवाद को
(घ) पाप के आवरण को
(ii) प्रकृति मनुष्य के आगे झुकती है :
(क) भाग्य से
(ख) स्वयं से
(ग) परिश्रम से
(घ) उपर्युक्त तीनों से
(iii) मनुष्य ने सुख पाया है :
(क) भाग्य के बल से
(ख) दूसरों के बल से
(ग) भुजबल से
(घ) उपर्युक्त तीनों से
(iv)इस काव्यांश से क्या प्रेरणा मिलती है?
(क) दूसरों का शोषण करने की ।
(ख) भाग्य के भरोसे बैठने की ।
(ग)उद्यमी प्राणी बनने की ।
(घ) निरुद्यमी प्राणी बनने की ।
(v) भाग्य का लेख कैसे लोग पढ़ते हैं?
(क) उद्यमी
(ख)निरुद्यमी
(ग)परिश्रमी
(घ)उपर्युक्त तीनों
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Answers
Explanation:
1) भाग्यवाद को
2) भाग्य से
3) उपर्युक्त तीनों से
4) निरुद्यमी प्राणी बनने की ।
5) निरुद्यमी
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(i) (ग)
(ii) (ग)
(iii) (ग)
(iv) (ग)
(v) (ख)
उत्तर (i) काव्यांश के अनुसार शोषण का शास्त्र भाग्यवाद को कहा गया है क्योंकि मनुष्य भाग्य के भरोसे बैठकर अपना किमती समय बर्बाद करता है | मनुष्य उस समय को कार्य करने में लगा सकता है परन्तु वह भाग्य के भरोसे बैठा रहता है|
उत्तर (ii) काव्यांश के अनुसार प्रकृति ,मनुष्य के आगे परिश्रम से झुकती है,क्योंकि कार्य करने से ही फल की प्राप्ति होती है इसलिये मनुष्य को कार्य करना चाहिए और परिश्रम करना चाहिए.क्योंकि परिश्रम से ही भाग्य में उन्नति होती है|
उत्तर (iii) मनुष्य ने सुख पाया है भुजबल से क्योंकि भुजबल का अर्थ है परिश्रम |परिश्रम से ही भाग्य में उन्नति होती है|
उत्तर (iv) इस काव्यांश से क्या प्रेरणा मिलती है उद्यमी प्राणी बनने की| उद्यमी अर्थात् परिश्रमी और मेहनती मनुष्य|
उत्तर (v) भाग्य का लेख निरुद्यमी लोग पढ़ते हैं|
सही उत्तर निम्नलिखित है:
(i) ’शोषण का शस्त्र’ भाग्यवाद को कहा गया है |
(ii) प्रकृति मनुष्य के आगे परिश्रम से झुकती है |
(iii) मनुष्य ने सुख पाया है भुजबल से |
(iv) इस काव्यांश से क्या प्रेरणा मिलती है उद्यमी प्राणी बनने की |
(v) भाग्य का लेख निरुद्यमी लोग पढ़ते हैं |
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