Hindi, asked by ajayb4486, 4 months ago

ब्रह्मचर्याश्रम को जीवन रूपी भवन की.........माना गया है​

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Answered by rishab9615
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Explanation:

ब्रह्मचर्याश्रम हिन्दू मान्यता में व्यक्ति की उत्पत्ति में दूसरा काल या आश्रम होता है। हिन्दू धर्म के अनुसार चार प्रकार के काल या आश्रम बताये गये हैं — गर्भाश्रम – जो कि मनुष्य के जन्म से लेकर लगभग आठ वर्ष की उम्र तक अपनी माता के साथ रहने को कहते हैं, ब्रह्मचर्याश्रम – जो कि लगभग आठ से पच्चीस वर्ष की आयु तक होता है और व्यक्ति गुरुकुल में विद्या तथा सांसारिक ज्ञान अर्जित करने में व्यतीत करता है, गृहस्थाश्रम – जो कि लगभग पच्चीस से पचास वर्ष तक की आयु का होता है और व्यक्ति गुरुकुल के गुरु द्वारा आयोजित विवाह के सांसारिक बोध में अपने को समर्पित कर देता है तथा वानप्रस्थाश्रम – जब मनुष्य ईश्वर की उपासना की ओर गतिबद्ध हो जाता है। यहाँ पर भी वह अपने सांसारिक उत्तरदायित्व का निवारण करता है। पाँचवीं अवस्था जो कि वैकल्पिक है, सन्यास की है, जब व्यक्ति सांसारिक मोह माया के परे जाकर केवल भगवत् स्मरण करता है। इस अवस्था के लिए यह अनिवार्य है कि मनुष्य ने अपने सारे उत्तरदायित्व भलि भांति निभा लिए हों। इस अवस्था में मनुष्य अरण्य में जाकर ऋषियों की शरण लेता है।

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