बिरहिनि बिरह दही का अर्थ ??
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उपरोक्त पद में महाकवि सूरदास गोपियों के मन वरीयता का वर्णन करते हुए कहते है कि हमारे मन में विचारों की उथल-पुथल मची हुई है, वो एक ही बात को पुनः पुनः विचार करती है। हे उद्धव यह मन की बातें किससे कहूं अपने मन की बात किसी से नहीं कही जाती। कृष्ण के आने कि आशा में हमने यह तन और मन की व्यथा सहन की थी। अब तुम्हारे मुख से यह योगसंदेश सुन सुन कर हमारी विरह व्यथा बढ़ती जा रही है। अब हम अपने आंसुओं के सैलाब को नहीं रोक पा रही हैं। गोपियां कहती है कि अब हम अधिक धैर्य धारण नहीं कर सकती हैं।
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