बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देनी शुरू की ?
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आज भारतीय शास्त्रीय नृत्य 'कत्थक' के मशहूर कलाकार बिरजू महाराज का 80वां जन्मदिन है. लखनऊ के कत्थक घराने में उनका जन्म 4 फरवरी 1938 में हुआ था. उन्होंने महज 3 वर्ष की उम्र में ही प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी थी जिसे देखकर उनके पिता ने उन्हें कला शिक्षा देनी शुरू कर दी. लेकिन जब वह 9 साल थे उनके पिता का निधन हो गया जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. लेकिन पिता के निधन के बाद भी उन्होंने अपने चाचा से कत्थक नृत्य प्रशिक्षण लेना शुरू किया. वह कत्थक प्रेमी हैं. उन्होंने कत्थक के साथ कई प्रयोग किए और फिल्मों के लिए कोरियोग्राफ भी किया. उनकी तीन बेटियां और दो बेटे हैं.
पुरस्कार
बिरजू महाराज ने प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार ’संगीत नाटक अकादमी’, ’पद्म विभूषण’ साल 1956 में प्राप्त किया. मध्यप्रदेश सरकार ने महाराज को कालिदास सम्मान’से नवाजा. बिरजू महाराज ’सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’, ’एस एन ए अवार्ड’ व ’संगम कला अवार्ड’ से भी सम्मानित हो चुके हैं. उन्होंने दिल्ली में 'कलाश्रम' नाम से कत्थक संस्थान की स्थापना की.
विरासत में मिला कत्थक नृत्य
कत्थक नृत्य बिरजू महाराज को विरासत में मिला. उनके पूर्वज इलाहाबाद की हंडिया तहसील के रहने वाले थे. यहां साल 1800 में कत्थक कलाकारों के 989 परिवार रहते थे. आज भी वहां कत्थकों का तालाब और सती चौरा है.
नाच दिखाकर लेते थे पतंग
बिरजू महाराज की मां का उनका पतंग उड़ाना और गिल्ली-डंडा खेलना बिल्कुल पसंद नहीं था. जब मां पतंग के लिए पैसे नहीं देतीं तो नन्हा बिरजू दुकानदार बब्बन मियां को नाच दिखा कर पतंग ले लिया करता.
भारत के शास्त्रीय नृत्यों में सबसे पुराना कत्थक है. इस संस्कृत शब्द का अर्थ होता है कहानी सुनाने वाला. बिरजू महाराज की तबला, पखावज, नाल, सितार आदि कई वाद्य यंत्रों पर भी महारत हासिल है, वो बहुत अच्छे गायक, कवि और चित्रकार भी हैं.
इसी के साथ बिरजू महाराज का ठुमरी, दादरा, भजन व गजल गायकी में भी कोई जवाब नहीं है. बता दें, महाराज जी ने सत्यजीत राय की 'शतरंज के खिलाड़ी' से लेकर 'दिल तो पागल है', 'गदर', 'देवदास', 'डेढ़ इश्किया', 'बाजीराव मस्तानी' जैसी कई फिल्मों में नृत्य निर्देशन किया है.