ब्रजवासी कृष्ण के वेश में कैसे थे
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Brijwasi Krishna ke vesh Mein gwale the
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रासक परंपरा के जनक जहाँ भगवान कृष्ण माने जाते हैं, वहाँ रास की नाट्य परंपरा की जनक ब्रज- गोपी थीं। भागवतकार के अनुसार शरद- निशा में महारास करते- करते जब श्री कृष्ण अंतर्धान हो गए तब उनके विरह में व्यथित ब्रजांगनाओं ने उनकी ब्रजलीला का यमुना- तट की बालुका में अनुकरण किया था। यह कृष्ण- लीलानुकरण लोक शैली में था, जिसके लिए चंद्रमा की चांदनी ने प्रकाश की व्यवस्था की, वृंदावन के यमुना- पुलिन का रमणीय तट उसका मंच बना तथा स्वयं गोपियों के वस्र ही उस समय दृश्यवंध बनाने के उपकरण बने। गिरिराज धारण का दृश्य गोपिकाओं ने अपनी ओढ़नी द्वारा बनाया था। इन गोवियों ने रासलीलाओं के अनुकरण की जो परंपरा स्थापित की उसी का विकाश हमें हरिवंश पुराण में आरोजित राज वर्णन में मिलता है, जहाँ देवांगनाओं ने आकर विभिन्न कृष्णलीलाओं का प्रदर्शन किया था। हमारे संस्कृत ग्रंथों में भी रास के नाटकीय प्रदर्शन के कई उल्लेख उपलब्ध हैं। "कर्पूर मंजरी' में विभिन्न रसों की अभिव्यक्ति नर्तकियों द्वारा की जाने का विस्तृत विवरण उपलब्ध हैं।
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