Hindi, asked by khushi0864, 4 months ago

बीरऔर ईश्वरी के स्वभाव में क्या अंतर था​

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Answered by jahanvisharma2910200
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दशहरे की छुट्टियाँ होने को थीं। ईश्वरी अपने घर जा रहा था। इसका मित्र अपने घर नहीं जाना चाहता था। उसके पास किराये के लिए पैसे नहीं थे। वह घरवालों से अधिक पैसा माँगना नहीं चाहता था। साथ ही परीक्षा का भी ख्याल था। उसको पढ़ाई भी करनी थी। घर जाकर पढ़ाई हो नहीं सकती थी।

Answered by VineetaGara
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  • ईश्वरी अपने घर जा रहा था। इसका मित्र अपने घर नहीं जाना चाहता था। उसके पास किराये के लिए पैसे नहीं थे। वह घरवालों से अधिक पैसा माँगना नहीं चाहता था।
  • ईश्वरी एक जमींदार का पुत्र था और उसका मित्र एक गरीब क्लर्क का बेटा था। दोनों इलाहाबाद में बोर्डिंग में साथ रहते और पढ़ते थे।
  • दशहरे की छुटि्टयों में बीर ईश्‍वरी के आमंत्रण पर उसके साथ गांव चला गया। अपने घर जाने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। ईश्‍वरी ने उसे समझाया कि वह उसके घर जाकर जमींदारों की निंदा न करे।
  • ईश्वरी ने अपने नौकरों के सामने अपने मित्र का बढ़ा-चढ़ाकर परिचय दिया। वह एक मामूली क्लर्क का बेटा था परन्तु उसको ढाई लाख की रियासत का उत्तराधिकारी बताया।
  • ईश्वरी चाहता था कि उसके नौकर उसके मित्र का सम्मान उसी के समान करें।
  • ईश्वर के घर पहुंचकर लेखक की सोच में निम्न प्रकार से परिवर्तन आया
  • अभी तक लेखक या सोचा था कि जितनी जिंदगी मिली है उतनी जिंदगी में पैसा कमाते रहो तो सब कुछ मिल सकता है ।
  • लेकिन जब ईश्वर के घर पहुंचा तो उसे लगा कि उसने जिंदगी भर इतनी मेहनत की पैसे कमाए लेकिन वह से अपने साथ ईश्वर के घर तक नहीं लेकर आ पाया ईश्वर के घर तक तो उसे बस उसकी श्रद्धा ही लेकर आई है।
  • इसीलिए इतने सारे पैसे कमाने से क्या लाभ जो हमें अपने ईश्वर हमें अपनी इंसानियत से ही दूर कर दे ।
  • 'नशा' कहानी 'नरेटर' द्वारा 'मैं' शैली में कही गई है। यह कहानी नरेटर के चरित्र का, उसके ही विवरणों के आधार पर मनोविश्लेषण करती है, इसलिए इन कथनों पर ध्यान देना ज़रूरी है।
  • 'नरेटर एक गरीब क्लर्क का फटेहाल बेटा है और गरीब के हक वाली विचारधारा का कॉलेज का विद्यार्थी है। कहानी आज़ादी से पहले के दौर की है।

#SPJ6

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