बांस की टोकरी बनाने की विधि
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बांस शिल्प यानि बांस से बनी कलात्मक वस्तुएं, जिसमें हम बांस की टोकरी
की बात करेंगे क्योंकि टोकरी एक ऐसी चीज़ है जो हमको बाज़ार में हर कहीं नहीं
दिखती, बांस की कमी के कारण सिर्फ कुछ ख़ास तौर के फल सब्जी विक्रेताओं के
पास ही दिखती हैं|
बांस की वस्तुएं बनाने वाले बंसोड़ जाति के लोग होते हैं | उनकी आजीविका बांस की वस्तुओं के क्रय-विक्रय से ही चलती है |
वैसे तो हरे बांस से बनाई जाती हैं किन्तु इनकी कटाई पर सरकार द्वारा रोक
लगाने से बंसोड़ जाति ने दूसरा तरीका निकाला | एक-या तो बांस चुराकर लाओ,
दो-महंगे दामों में खरीदो, तीन-सूखा बांस काम में लो | बंसोड़ो ने सूखे बांस
को पानी में डुबोकर उसे काम में लेने लायक बनाना शुरू किया | एक विशेष
किस्म की छुरी से बांस को छीला जाता है | लम्बी लम्बी पट्टियाँ निकाली जाती
हैं | फिर इन्हें और भी छीलकर पतला किया जाता है | फिर इन पट्टियों और
छीलन को रंगा जाता है | रंग में कम से कम 2-3 घंटे डुबो कर रखने के बाद
क्रॉस करते हुए बास्केट या टोकरी का रूप दिया जाता है |
बांस से और भी वस्तुएं बनती हैं जैसे अनाज साफ़ करने का सूप या सूपड़ा, बांस के दरवाजे, मुखौटे, खिलौने, हाथ पंखें आदि |
जब त्यौहार या शादी ब्याह का मौसम होता है
तो एक दिन में लगभग 200 टोकरियाँ बिक जाती हैं और उनका घर इसी से चलता है |
अब लोग पहले की तरह रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में बांस की टोकरी का इस्तेमाल
नहीं करते | पहले घरों में फल-फूल रखने, रोटी रखने और शादी में उपहार पैक
करने के लिए टोकरियों का इस्तेमाल करते थे किन्तु आधुनिकीकरण के चलते अब इस
जाति का जीवन खतरे में पड़ गया है | ये लोग ढक्कन वाली टोकरी, बिना ढक्कन
वाली, हैंडल वाली टोकरी, बड़ी-छोटी सभी प्रकार की टोकरियाँ बनाते हैं और
उत्सवों के अनुसार डिमांड के हिसाब से भी बना देते हैं |
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