बेसीन की संधि (1802) से कंपनी को क्या लाभ हुआ ?
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पेशवा बाजीराव द्वितीय ने दिसम्बर 1802 ई० में बेसीन की सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसके द्वारा पेशवा, जो मराठों का नेता माना गया था, सहायक सन्धि को मानने को प्रस्तुत हो गया। पेशवा ने एक सहायक अंग्रेजी सेना रखने की स्वीकृति दे दी, जिसके व्यय के लिए 26 लाख रुपए वार्षिक आय का एक प्रदेश कम्पनी को दे दिया गया। सूरत पर से भी पेशवा ने अपना दावा त्याग दिया तथा अपनी बाह्य नीति के अनुसरण के लिए उसने अंग्रेजों का नियन्त्रण स्वीकार कर लिया। इसके बदले में अंग्रेजों ने पेशवा की सहायता करने का वचन दिया। सर आर्थर वेलेजली के अनुसार- “यह सन्धि एक शून्य (पेशवा की शक्ति) से की गई थी।
बेसीन की सन्धि लॉर्ड वेलेजली की सबसे बड़ी कूटनीतिक विजय थी। पेशवा, जो मराठों का सरदार था, के अंग्रेजों के संरक्षण में आने का अभिप्राय था, सम्पूर्ण मराठों का अंग्रेजों के सरंक्षण में आ जाना। मराठा जाति, जो एकमात्र भारतीय जाति थी, जिससे अंग्रेजों की शक्ति के विनाश की आशा की जा सकती थी, इस सन्धि द्वारा अंग्रेजों के संरक्षण में आ गई। सिन्धिया इस समय भारत का सबसे शक्तिशाली सरदार था, जिसने मुगल सम्राट तक को दहला रखा था तथा दक्षिण में पेशवा का जो सबसे बड़ा समर्थक था, उसका बेसीन की सन्धि को स्वीकार कर लेना बड़ा महत्व रखता था, क्योंकि इस प्रकार उत्तरी तथा दक्षिणी भारत को अंग्रेजों ने अपने संरक्षण में ले लिया। भारतीय तथा अंग्रेज दोनों इतिहासकारों ने ब्रिटिश साम्राज्य के भारत में विस्तार के इतिहास में इस सन्धि को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना है। वेलेजली ने यह सोचा था कि पेशवा द्वारा बेसीन की सहायक सन्धि कर लिए जाने पर मराठा सरदार अंग्रेजों की प्रभुता स्वीकार कर लेंगे किन्तु उसकी यह धारणा गलत साबित हुई।
बेसीन की सन्धि का समाचार सुनकर मराठा सरदार अत्यन्त क्रुद्ध हुए। उनका मानना था कि पेशवा ने उनके परामर्श के बिना ही मराठों तथा देश की स्वतन्त्रता को अंग्रेजों के हाथ बेच दिया है। अत: उसका प्रतिकार करने के लिए उन्होंने युद्ध की तैयारियाँ आरम्भ कर दी। परन्तु इस संकटकाल में भी मराठे संगठित नहीं हो सके। होल्कर ने मराठा संघ में सम्मिलित होने से इन्कार कर दिया परन्तु सिन्धिया तथा भोंसले संगठित हो गए। गायकवाड़ इस युद्ध में तटस्थ रहा।