बीत गया हेमंत भ्रात, शिशिर ऋतु आई !
प्रकृति हुई ट्युतिहीन, अवनि में कुंझटिका है छाई
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➲ ‘समता की ओर’ और नामक कविता इन तीन पंक्तियों का भावार्थ यह है...
बीत गया हेमंत भ्रात, शिशिर ऋतु आई !
प्रकृति हुई ट्युतिहीन, अवनि में कुंझटिका है छाई।
व्याख्या ⦂ कवि कहते हैं कि शिशिर ऋतु के बड़े भाई हेमंत का समय अब चला गया है। अब शिशिर ऋतु का आगमन हो गया है। शिशिर ऋतु अपनी चरम पर है और उसकी कंपा देने वाली ठंड से प्रकृति की चमक भी चारों तरफ खत्म हो गई है। प्रकृति कांति विहीन हो गई है। पृथ्वी पर चारों ओर ठंड का धुंधलका छा गया है।
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sanyukta vakya
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sanyukta vakya
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