बात का तत्त्व समझना हर एक का काम नहीं है और दूसरों की समझ पर आधिपत्य जमाने योग्य बात गढ़ सकना भी ऐसों-वैसों का साध्य नहीं है । बङे-बङे विज्ञवरों तथा महा-महा कवीश्वरों के जीवन बात ही के समझने समझाने में व्यतीत हो जाते हैं । सह्रदयगण की बात के आनन्द के आगे सारा संसार तुच्छ जँचता है । बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की मीठी-मीठी प्यारी-प्यारी बातें, सत्कवियों की रसीली बातें, सुवक्ताओं की प्रभावशालिनी बातें, जिनके जी को और का और न कर दें, उसे पशु नहीं पाषाणखण्ड कहना चाहिए ।
(अ) उपर्युक्त गद्यांश का सन्दर्भ अथवा पाठ और लेखक का नाम लिखिए ।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए ।
(स) किन लोगों को पशु नहीं पाषाणखण्ड कहना चाहिए ?
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बालकों की तोतली बातें, सुन्दरियों की मीठी-मीठी प्यारी-प्यारी बातें, सत्कवियों की रसीली बातें, सुवक्ताओं की प्रभावशालिनी बातें, जिनके जी को और का और न कर दें, उसे पशु नहीं पाषाणखण्ड कहना चाहिए ।
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