बेटी को विदा करते समय माँ के मन में क्या चिन्ता होती है ? और क्यों ?
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इस कविता में कवि ने माँ की उस पीड़ा को व्यक्त किया है जब वह अपनी बेटी को विदा करती है। माँ के हृदय में आशंका बनी रहती है कि कहीं ससुराल में उसे कष्ट तो नहीं होगा, अभी वह भोली है। विवाह के बाद वह केवल सुखी जीवन की कल्पना कर सकती है किन्तु जिसने कभी दुःख देखा नहीं वह भला दुःख का सामना कैसे करेगी। माँ अपनी बेटी को सीख देते हुए कहती हैं कि प्रतिबिम्ब देखकर अपने रूप-सौंदर्य पर मत रीझना। माँ दूसरी सीख देते हुए कहती हैं कि आग का उपयोग खाना बनाने के लिए होता है इसका उपयोग जलने-जलाने के लिए मत करना। तीसरी सीख देते हुए माँ कहती हैं कि वस्त्र आभूषणों को ज्यादा महत्व मत देना, ये स्त्री जीवन के बंधन हैं। माँ कहती हैं लड़की होना कोई बुराई नहीं है परन्तु लड़की जैसी कमजोर असहाय मत दिखना।
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