बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ ।
जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ ।।
ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै।
दुर्जन हँसे न कोय, चित्त में खता न पावै ।।
कह गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे की सुधि लेइ, समझु बीती सो बीती ।।
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Hyy
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कविराज गिरिधर कहते हैं कि जो बीत गया उसे जाने दो, बस आगे की सोच, जो हो सकता हैं उसी में अपना मन लगा अगर जिसमे मन लगता हैं वही करेगा तो सफल जरुर होगा | और ऐसे में कोई हँसेगा नहीं इसलिए कवी राज कहते हैं जो मन कहे वही करो बस आगे का देखो पीछे जो गया उसे बीत जाने दो |
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बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ । जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देअ ।। ताही में चित देइ, बात जोई बनि आवै । दुर्जन हँसे न कोय, चित्त में खता न पावै ।। कह गिरिधर कविराय यहै करू मन परतीती। आगे की सुधि लेइ, समझु बीती सो बीती ।।
पानी बाढो नाव में, घर में बाढ़ों दाम । दोनों हाथ उलीचिए, यही सयानो काम । यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै । परस्वास्थ के काज, शीस आगे कर दीजै ।। कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी । चलिए चाल सुचाल, राखिए अपनो पानी ।।
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