बेटे, तुम क्या कर रहे हो?
आसमान में उड़ना ही फिजूल है, वह मूखों का काम है।
बेटे, दीमकें हमारा स्वाभाविक आहार नहीं है।
यह तो कोई बड़ी बात नहीं है। मुझे तो दूसरे कीड़े, फल, अनाज के दाने
कुछ भी अच्छे नहीं लगते।
गाड़ीवाले को अपना पंख तोड़कर क्यों देते हो?
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