ब
त
दन
सेसोच रहा था, थोड़ी धरती पाऊं उस धरती म
बाग बगीचा, जो हो सकेलगाऊं।
खलेफूल फल
च
ड़या बोले,
यारी खुशबूडोले ताजी हवा जलाशय म
अपना हर अगं
भगो ले।
हो सकता हैपास तु
हारे, अपनेकुछ धरती हो
फूल फल लगेअपनेउपवन हो, अपनी परती हो।
हो सकता हैछोट
सी
यारी हो महक रही हो
छोट
सी खेती हो जो फसल
सेदहक रही हो।
हो सकता हैकह
शातं चौपाए घूम रहेहो
हो सकता हैकह
सहन म
प
ी झूम रहेहो।
तो
वनती हैयही, कभी मत उस
नया को खोना
पेड़
को मत कटनेदेना, मत
च
ड़य
को रोना।
१. उपय
ु
का
ांश का उपयु
शीष
क
ल
खए।
२. क
व
कतनी धरती क
इ
छा रखता है?
३. कभी पाठक से
या नह
कटनेदेनेके
लए कह रहा है?
४. कभी के जलाशय म
कौन अपनेअगं
भगो
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ha yahi hoga
yahi hoga
।।bahi han
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