बढ़ते उघोग घाटते वन paragraph
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आज विश्व में विकास की अंधी दौड़ में, बड़ी तेजी से वनों को काटा जा रहा है, जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है तथा पृथ्वी पर जीवों के अस्तित्व के लिये खतरा बढ़ता जा रहा है तथा राष्ट्र को आर्थिक हानि हो रही है।
एक रिपोर्ट के अनुसार विगत 3 वर्षों (2009-2011) में ही भारत में 5339 स्क्वायर किलो मीटर वन क्षेत्र विकास के नाम पर बलि चढ़ गये तथा राष्ट्र को 2000 करोड़ रूपये की आर्थिक हानि हुई।
वास्तव में इन आपदाओं के बढ़ने का मुख्य कारण वनों की अंधाधुंध कटाई है।
वनों के कटने के कई कारण हैं जैसे बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, पर्यावरण असंतुलन, ग्लोबल वार्मिंग, अतिवृष्टि, बाढ़, भू-स्खलन, वनाग्नि, भूकम्प, बढ़ता खनन कार्य, औद्योगिकीकरण, समुद्र के किनारे बसे क्षेत्रों में वनों का समय-समय पर आने वाले तूफान में नष्ट हो जाना।
अधिक धन कमाने के लिये वन माफियाओं द्वारा दुलर्भ जड़ी-बूटियों तथा लकड़ी की तस्करी हेतु पेड़ों को बड़े पैमाने पर अवैध कटान।
पर्यावरण संतुलन के निर्धारित मापदंडों की अवहेलना एवं अनियोजित निर्माण कार्यों से वन क्षेत्र लगातार घटते जा रहे हैं।