बेटियों के प्रति भेदभाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है
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भारत की शीर्ष महिला बैंकर एसबीआई प्रमुख अरुंधती भट्टाचार्य, आईसीआईसीआई बैंक प्रमुख चंदा कोचर और एक्सिस बैंक की मुख्य कार्यकारी शिखा शर्मा अमेरिका से बाहर विश्व की 50 सबसे शक्तिशाली महिलाओं मे शामिल हैं। फॉच्र्यून द्वारा जारी सूची में अमेरिका से बाहर की महिलाओं को भी शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट द्वारा भारतीय महिलाओं की क्षमता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। परंतु जहां एक तरफ इस रिपोर्ट की सच्चाई है वहीं दूसरी तरफ समाज के एक बड़े हिस्से की सोच आज भी लड़कियों के प्रति काफी पिछड़ी हुई है।
देश के कई हिस्सों में लड़कियों की जल्दी शादी करके विदाई कर देते हैं। कई जगह पर तो हम 12 साल की उम्र मे ही लड़कियों की शादी कर देते हैं क्योंकि उनका मानना है कि आज का जमाना अच्छा नही है लड़कियां पढ़ाई-लिखाई के लिए अगर बाहर जाएं तो उनके साथ कुछ भी बुरा हो सकता है इसलिए अच्छा है कि वो जल्द अपने ससुराल चली जाएं। कारण है आर्थिक रुप से लोगो का मजबूत न होना, जिस कारण कई बार बड़ी बहन के साथ छोटी बहन की भी शादी करा दी जाती है। भले ही उस समय उसकी उम्र 10 या 11 वर्ष ही क्यों न हो। कारणवश लड़कियां कई बार छोटी उम्र मे मां बन जाती है, परंतु उनका और उनके बच्चे का स्वास्थ्य खराब हो जाता है।
कम उम्र मे लड़कियों की शादी कर देने की वजह सिर्फ ये नहीं है कि लोगों के पास ज्यादा पैसा नहीं होता बल्कि लोग लड़के-लड़कियों मे भेदभाव भी बहुत करते हैं इसलिए लड़कियों को पढ़ाने- लिखाने पर पैसा बर्बाद करने से ज्यादा अच्छा जल्द से जल्द उनकी शादी कर देना समझते हैं। उनका मानना है कि बेटी तो कुछ दिनों बाद ससुराल चली जाती है, लेकिन बेटा हमेशा साथ रहेगा और ऊपर से पैसे कमाएगा सो अलग।
लड़कियों को पढ़ाने को पैसे की बर्बादी समझा जाता है क्योंकि लड़कियां चाहे जितना भी पढ़ लिख लें, जाएंगी तो पराये घर ही। फिर उनकी पढ़ाई पर जितना खर्च आएगा उतने में तो उनकी शादी हो जाएगी। तो क्या करना है लड़कियों को पढ़ाकर। लड़कियों के प्रति लोगो की सोच सूचना और क्रांति के इस दौर मे भी वैसे ही पिछड़ी है जैसे कई हजारो साल पहले थी और भेदभाव की यह समस्या सिर्फ किसी एक गांव तक ही सीमित नही है बल्कि अब भी भारत के कई हिस्सों मे है। इसका सबसे बड़ा साक्ष्य है- जनगणना 2011 के आंकड़ो जो बताते है कि पिछले 10 वर्षो मे हमारी जनसंख्या बढ़कर 121 करोड़ जरूर पहुंच गई है लेकिन इसमे 6 वर्ष की आयु पर प्रति एक हजार बालक पर मात्र 914 लड़कियां ही बची हैं।
राजस्थान मे प्रति एक हजार लड़को पर मात्र 883 लड़किया रह गई है। जबकि गोवा मे 920, हरियाणा मे 830, दिल्ली मे 866, महाराष्ट्र मे 883, गुजरात मे 886, और पंजाब मे यह संख्या 846 है । इसके अतिरिक्त यूएडीपी के लिंग असमानता सूचकांक के 152 देशो की सूची मे भारत 127 वें स्थान पर है। तमाम आंकड़ो से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्तमान समय मे लड़कियों की सुरक्षा के लिए चलने वाली राष्ट्रीय एंव राजकीय योजनाओ के बावजूद हमारे देश मे लड़कियों को सुरक्षा नही मिल पा रही है । इसलिए जरूरत इस बात की नही है कि हर वर्ष सिर्फ नई-नई योजनाओं को लागू किया जाए, बल्कि लड़कियों के प्रति लोगो की मानसिकता को बदलने के लिए भी निरंतर प्रयास करने होंगें ताकि फिर कोई मां अपनी बेटी के लिए ये न कहे कि बेटी तो ससुराल चली जाएगी, बेटा हमेशा रहेगा साथ।