बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली?
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कांग्रेस हमेशा देश के विभाजन का विरोध करती रही थी। लेकिन बाद में परिस्थितियां ऐसी बन गई कि उसे अपनी सोच में बदलाव लाना पड़ा और विभाजन को स्वीकार करना पड़ा। इसके निम्नलिखित कारण थे...
- अंग्रेजों ने आरंभ से ही मुस्लिम लीग बढ़ावा दिया था। अंग्रेज लोगों की नीति थी कि फूट डालो और राज करो। वह हिंदू मुस्लिम एकता में अड़चन डालना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने मुस्लिम लीग के नेताओं को भड़काना शुरू कर दिया। इससे मुस्लिम लीग के नेताओं में सांप्रदायिक भावना पनपने लगी और उनके मन में मुस्लिमों के लिए एक अलग स्वतंत्र राष्ट्र की मांग जन्म लेने लगी।
- मुस्लिम लीग के एक बड़े नेता जिन्ना की राजनीति पूरी तरह सांप्रदायिकता पर आधारित थी। उन्होंने कांग्रेस की राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध विषवमन करना शुरू कर दिया। उन्होंने देश में यह दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया कि यदि कांग्रेस के हाथ में सत्ता रही तो भारत में बहुसंख्यक संख्या के आधार पर हिंदू राष्ट्र कायम हो जाएगा और मुसलमानों की संस्कृति और सभ्यता को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाएगा। हिंदू लोग राज करेंगे और मुसलमान लोग गुलाम बनकर रहेंगे। इस स्थिति से बचने के लिए मुसलमानों को एक अलग देश मिलना चाहिए। जिन्ना ने लखनऊ अधिवेशन में यह भी दुष्प्रचार फैलाया की हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा होगी और वंदे मातरम राष्ट्रीय गीत होगा। कांग्रेस का झंडा ही देश का झंडा होगा।
- 1940 में लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसमें भारत के उत्तर-पश्चिम और पूर्वी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की स्वायत्ता मांग की गईष उस समय तक मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अवधारणा को पूर्ण रूप से पेश नहीं किया था, लेकिन अलग देश की मांग की आधारशिला रखी जा चुकी थी।
- मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया। बंगाल विभाजन का समर्थन किया, स्वदेशी के सर्मथन तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आंदोलन में भाग नही लिया।
- कांग्रेस ने शुरु से ही मुस्लिम लीग की अनुचित मांगों को पूरा किया था, जिससे मुस्लिम लीग मजबूत होती गयी और कांग्रेस अपनी तुष्टीकरण की नीति के कारण मुस्लिम के जाल में फंसती गयी।
- जिन्ना के भड़काऊ दुष्प्रचार के कारण हिंदू मुस्लिमों में वैमनस्य बढने लगा था और देश में दंगे भड़क उठे। देश में कानून व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक हो गई। जिन्ना का नारा ‘लड़कर लेंगे पाकिस्तान’ मुसलमानों को भड़काने के लिए काफी था। इससे सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए और हजारों लोग विस्थापित हो गए। इन सब घटनाओं ने देश की कानून व्यवस्था को बिल्कुल हिला कर रख दिया और गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए।
- दूसरे विश्व युद्ध के बाद वायसराय बेवल ने शिमला में सम्मेलन बुलाया। लेकिन मुस्लिम नेताओं के यह सम्मेलन असफल रहा। मुस्लिम लीग ने सांप्रदायिक समस्या के निवारण का एकमात्र उपाय पाकिस्तान बताया था, लेकिन कैबिनेट मिशन ने पाकिस्तान की मांगों को ठुकराते हुए एक भारतीय संघ का निर्माण का प्रस्ताव रखा। जिसे कांग्रेस और मुस्लिम दोनों ने स्वीकार कर लिया, लेकिन बाद में मुस्लिम लीग के नेताओं ने इसे अस्वीकार कर दिया और इस अस्वीकृति के कारण देश का विभाजन जरूरी हो गया, और कांग्रेस को अपनी राय बदलनी पड़ी।
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