बाद को कई
जाता। दूसरे व
में हर छोटी-
गया हूँ। साथ
तकलीफ़ में
बहुत कद्र क
शरम महसूस
से
विनीता- आपके परि
धनराज- सबसे अधि
भाई-बहनों
ने लिखा है-'वह आपको कभी
कोशिश नहीं करता था। म बहुत जुझारू था-मैदान
हँसाता है, कभी रुलाता है, कभी में भी और मैदान से बाहर भी। 1986 में मुझे
विस्मय से भर देता है, तो कभी सीनियर टीम में डाल दिया गया और मैं
खीझ से भी। उसके व्यक्तित्व बोरिया-बिस्तरा बाँधकर मुंबई चला आया। उस
में कई रंग हैं और कई भाव। साल मैंने और मेरे बड़े भाई रमेश ने मुंबई लीग
उसने ठेठ ज़मीन से उठकर में बेहतरीन खेल खेला-हमने खूब धूम मचाई।
आसमान का सितारा बनने की इसी के चलते मेरे अंदर एक उम्मीद जागी कि
यात्रा तय की है।'
मुझे ओलंपिक (1988) के लिए नेशनल कैंप
बुलावा ज़रूर आएगा, पर नहीं आया। मेरा
नाम 57 खिलाड़ियों की लिस्ट में भी नहीं था। बड़ी मायूसी हुई। मगर
एक साल बाद ही ऑलविन एशिया कप के कैंप के लिए मुझे चुन
लिया गया। तब से लेकर आज तक मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
विनीता- आपका विद्यार्थी जीवन कैसा रहा? अपने स्कूल के दिनों से आपकी
किस प्रकार की यादें जुड़ी हैं?
धनराज- मैं पढ़ने में एकदम फिसड्डी था। किसी तरह दसवीं तक पहुँचा, मगर
उसके आगे तो मामला बहुत कठिन था। एक बात कहूँ-अगर मैं
हॉकी खिलाड़ी न होता तो शायद एक चपरासी की नौकरी भी
मुझे न मिलती। आज मैं बैचलर ऑफ़ साइंस या आर्ट्स भले ही न
होऊँ पर गर्व से कह सकता हूँ कि मैं बैचलर ऑफ़ हॉकी हूँ।
(हँसते हुए)...और मेरी शादी के लिए आप मुझे मास्टर ऑफ़ हॉकी
कह सकते हैं।
विनीता- आप इतने तुनुकमिज़ाज क्यों हैं? कभी-कभी आप आक्रामक भी हो
जाते हैं!
गज-इस बात का संबंध मेरे नन
नज़दीक हूँ
पहले माँ से
विनम्रता वे
कविता भी
रही हैं।
विनीता- आपने स
धनराज- मैंने सबसे
में भाग ल
सोमय्या
घास पर
मैं झुक-
रहा थ
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I can't understand hindi
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