Hindi, asked by RudraIsGod, 23 days ago

बूंद की उत्पत्ति में किसने अपना अस्तित्व मिटा दिया? ​

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Answered by bharatpatadia74
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Answer:

मैं आगे बढ़ा ही था कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूँद मेरे हाथ पर आ पड़ी। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि ओस की बूँद मेरी कलाई पर से सरक कर हथेली पर आ गई।

आश्चर्य का ठिकाना न रहा – हैरानी का अंत न होना

कलाई – हाथ का अगला हिस्सा

लेखक कहते हैं कि किसी काम से वह रास्ते पर जा रहे थे कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूँद लेखक के हाथों पर आ पड़ी। तो जब लेखक ने देखा कि ओंस की बूँद उनकी कलाई पर आकर गिर गई है और कलाई से सरक कर हथेली पर आ गई है तो ओंस की इस बूँद को देखकर वो हैरान हो उठे कि कोई बूँद पेड़ पर से आकर उनके हाथ पर कैसे गिर सकती है, यह जानने के लिए उनकी जिज्ञासा जाग उठी।

मेरी दृष्टि पड़ते ही वह ठहर गई। थोड़ी देर में मुझे सितार के तारों की-सी झंकार सुनाई देने लगी। मैंने सोचा कि कोई बजा रहा होगा। चारों ओर देखा। कोई नहीं।

दृष्टि – नज़र

जैसे ही लेखक की नज़र ओंस की बूंद पर पड़ी वह ठहर गई। थोड़ी देर में लेखक को सितार के तारों की तरह कुछ संगीत सा सुनाई देने लगा। लेखक ने सोचा कि कोई सितार बजा रहा होगा। उन्होंने चारों ओर देखा पर वहाँ कोई नहीं था जो सितार बजा रहा हो।

फिर अनुभव हुआ कि यह स्वर मेरी हथेली से निकल रहा है। ध्यान से देखने पर मालूम हुआ कि बूँद के दो कण हो गए हैं और वे दोनों हिल-हिलकर यह स्वर उत्पन्न कर रहे हैं मानो बोल रहे हों।

स्वर – आवाज

कण – बहुत छोटा अंश

लेखक को यह एहसास हुआ कि यह आवाज उन्हीं की हथेली से निकल रही है। ध्यान से देखने पर लेखक को मालूम हुआ कि जो उनकी हथेली पर एक बूँद गिरी थी अब वह दो हिस्से में बँट  गई थी, और वे दोनों हिल-हिलकर ऐसी आवाज पैदा कर रही थी, ऐसा लग रहा था दोंनो बूँदे आपस में बातचीत कर रही हो।

उसी सुरीली आवाज़ में मैंने सुना- “सुनो, सुनो…’’ मैं चुप था।

फिर आवाज़ आई, “सुनो, सुनो।’’

अब मुझसे न रहा गया। मेरे मुख से निकल गया, “कहो, कहो।’’

सुरीली – मधुर ध्वनि

मुख – मुँह

अब लेखक को यह एहसास हुआ कि दो बूंदे मधुर ध्वनि में आपस में बातचीत कर रही हैं, उन्हें लग रहा था जैसे वो बूंदें उनसे कुछ कहना चाह रही है क्योंकि उन्हें सुनो, सुनो ऐसी आवाज आई, लेकिन लेखक ने कुछ नहीं कहा। फिर लेखक को दोबारा आवाज आई, सुनो, सुनो। अब लेखक से न रहा गया। अब उत्सुकता वश लेखक के मुँह से निकल गया, कहो, कहो। 

ओस की बूँद मानो प्रसन्नता से हिली और बोली- ’’मैं ओस हूँ।’’

“जानता हूँ’’- मैंने कहा।

“लोग मुझे पानी कहते हैं, जल भी।’’

“मालूम है।’’

“मैं बेर के पेड़ में से आई हूँ।’’

मालूम – जानना

लेखक ने जैसे ही ओंस की बूंद से बात करने लगा ओस की बूँद मानो खुशी से हिली और बोली कि वह एक ओंस है। लेखक ने कहा कि उन्हें पता है कि वह ओंस है। ओंस ने आगे कहा कि लोग उसके इस रूप को पानी के नाम से भी जानते हैं और जल के नाम से भी। यह जानकारी ओंस ने जब लेखक को दी तो लेखक ने कहा कि उन्हें यह भी पहले से ही पता है। अब ओस की बूँद अपने बारे में बताती है कि वह लेखक की हथेली पर बेर के पेड़ से आई है।

“झूठी,’’ मैंने कहा और सोचा, ‘बेर के पेड़ से क्या पानी का फव्वारा निकलता है?’ 

बूँद फिर हिली। मानो मेरे अविश्वास से उसे दुख हुआ हो। 

“सुनो मैं इस पेड़़ के पास की भूमि में बहुत दिनों से इधर-उधर घूम रही थी। मैं कणों का हृदय टटोलती फिरती थी कि एकाएक पकड़ी गई।’’

फव्वारा – पानी की ऊँची धारा

भूमि – धरती

टटोलती – ढूंढती

एकाएक – अचानक

Explanation:

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