Hindi, asked by yp667564, 7 hours ago

बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली। आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते। आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गंध को ले। प्रातः वाली सुपक्न इसी काल वातायनों से।।1।।​

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Answered by solankijashoda1
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