बैठ लें कुछ देर,
आओ,एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप,निर्द्वन्द is kavita ki saransh yani ki summary
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दी गई कविता का सारांश निम्नलिखित है।
- दी गई पंक्तियां सूर्यकांत निरालाजी की रचित कविता " मौन " की है।
- इस कविता में कवि अपनी सहचरी से कहता है कि इस समय जीवन में अनेक कठिनाइयां है, हम कुछ शांत रहकर इन्हे सुलझा सकते है , मिलकर मौन रहकर हम आनंद की प्राप्ति कर सकते है।
- थोड़े समय मूक रहकर जीवन की मधुरता का अनुभव कर सकते हैं।
- कवि के अनुसार दुख के समय सहजता से काम लिया जा सकता है।
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